मुंशी प्रेमचंद को कहानियों का सम्राट क्यों कहा जाता है? विस्तार से बताएं।
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Isliye agr unhe kahaniyo ka samrat kha Jaye to unke samman me koi bahut badi baat nhi hogi .
मुंशी प्रेमचंद हिंदी कथा साहित्य के महान साहित्यकार माने जाते हैं। उन्होंने कहानी के साथ- साथ उपन्यास लेखन किया। उनकी प्रसिद्धि को आलम यह है कि उन्हें उपन्यास सम्राट कहा जाता है। वैसे उनका असली नाम धनपत राय था, लेकिन हिंदी साहित्य में उन्हें ख्याति प्रेमचंद नाम से मिली। वैसे उर्दू लेखन के शुरुआती दिनों में उन्होंने अपना नाम नवाब राय भी रखा था। उनके पिता अजायब राय और दादा गुरु सहाय राय थे। उनके नाम में कहीं भी मुंशी नाम का जिक्र नहीं आता तो आखिर उनके नाम में ‘मुंशी’ कहां से आया?
इस मुंशी और प्रेमचंद नाम को लेकर कहानी है।
प्रेमचंद के मुंशी प्रेमचंद बनने की कहानी बड़ी दिलचस्प है। एक मशहूर विद्वान और राजनेता कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने महात्मा गांधी की प्रेरणा से प्रेमचंद के साथ मिलकर हिंदी में एक पत्रिका निकाली। उसका नाम रखा गया-हंस। पत्रिका का संपादन केएम मुंशी और प्रेमचंद दोनों मिलकर किया करते थे, तब तक केएम मुंशी देश की बड़ी हस्ती बन चुके थे। वे कई विषयों के जानकार होने के साथ मशहूर वकील भी थे उन्होंने |गुजराती के साथ हिंदी और अंग्रेजी साहित्य के लिए भी काफी लेखन किया। मुंशी जी उस समय कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता थे।
वह उम्र में भी प्रेमचंद से करीब सात साल बड़े थे। बताया जाता है कि केएम मुंशी की वरिष्ठता का ख्याल करते हुए तय किया गया कि पत्रिका में उनका नाम प्रेमचंद से पहले लिखा जाएगा। हंस के कवर पृष्ठ पर संपादक के रूप में ‘मुंशी-प्रेमचंद’ का नाम जाने लगा।
यह पत्रिका अंग्रेजों के खिलाफ बुद्धिजीवियों का हथियार थी। इसका मूल उद्देश्य देश की विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं पर चिंतन-मनन करना तय किया गया ताकि देश के आम जनमानस को अंग्रेजी राज के विरुद्ध जाग्रत किया जा सके। इसमें अंग्रेजी सरकार के गलत कदमों की आलोचना होती थी।
हंस के काम से अंग्रेजी सरकार महज दो साल में तिलमिला गई। उसने प्रेस को जब्त करने का आदेश दिया। पत्रिका बीच में कुछ दिनों के लिए बंद हो गई और प्रेमचंद कर्ज में डूब गए, लेकिन लोगों के जेहन में हंस का नाम चढ़ गया और इसके संपादक ‘मुंशी-प्रेमचंद’भी। स्वतंत्र लेखन में प्रेमचंद उस समय बड़ा नाम बन चुके थे।लोगों ने उनकी कहानियों और उपन्यासों को हाथोंहाथ लिया। वहीं केएम मुंशी गुजरात के रहने वाले थे। कहा जाता है कि राजनेता और बड़े विद्वान होने के बावजूद हिंदी प्रदेश में प्रेमचंद की लोकप्रियता उनसे ज्यादा थी। ऐसे में लोगों को एक बड़ी गलतफहमी हो गई। वे मान बैठे कि प्रेमचंद ही ‘मुंशी-प्रेमचंद’हैं।