मेंशन द पोएटिक डिवाइस यूज्ड इन द लास्ट डेज ऑफ द पोयम एक्सप्लेन इन डिटेल विद एग्जांपल्स
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Explanation:
प्राकृतिक आपदा जो मानव जीवन से लेकर, कई करोड़ो की संपत्ति का नुकसान करते है। इस क्षति से उभर पाना सरकार और प्रशासन के लिए मुश्किलों भरा होता है। प्राकृतिक आपदाओं को रोकना और समाप्त तो नहीं किया जा सकता है, मगर इससे होने वाले भयंकर हानि को रोका जा जा सकता है। लोगो और जन जीवन की प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा करने के लिए आपदा प्रबंधन ज़रूरी होता है। पर्यावरण को भयंकर नुकसान प्राकृतिक आपदाएं पहुंचाती है। यह घटनाएं इतनी भयावाह और विनाशकारी होते है कि कभी ना ख़त्म होने वाले चोट दे जाते है।
प्राकृतिक आपदाएं जैसे: सुनामी, भूकंप, बाढ़, सूखा-अकाल, जंगलो में भीषण आग के कारण कई सम्पतियों का नुकसान होता है। सड़के बुरी तरह से टूट जाते है, पुलों का टूटना, सड़क हादसे, बड़ी बड़ी इमारतों का ढह जाना इत्यादि घटनाएं आपदाओं के कारण घटती है। इससे पर्यावरण और ज़्यादा प्रदूषित होता है। आपदाओं के असर को कम करने और बचाने के ज़रूरी तरीको को आपदा प्रबंधन कहा जाता है। इसके लिए हम सबको मिलकर प्रयत्न करना होगा। आपदाओं के नुकसान का अच्छी तरह से मूल्यांकन करना, संचार माध्यमों को फिर से ठीक करना, परिवहन और बचाव, सुचारू रूप से भोजन प्रबंध और पानी सेवन के प्रबंध, बिजली जैसी शक्ति को प्रभावित इलाको में फिर से पहुंचाना इत्यादि कार्य शामिल है।आपदा आने से पूर्व सभी लोगो को चेतावनी दी जाती है। उसके अनुसार बचाव कार्य के लिए रणनीति भी बनायी जाती है। आपदा से पीड़ित लोगो को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाना और उनकी सहायता करना , आपदा प्रबंधन कार्य के अंतर्गत आता है। किसी भी तरह के जोखिमों को पहले से ही भाप लेना , आपदा प्रबंधन का परम कर्त्तव्य होता है। प्राकृतिक आपदाएं देश की उन्नति के लिए बाधक साबित होती है।
प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए वर्ष 2005 में देश की सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम जारी किया। सरकार ने आपदाओं से रक्षा करने के लिए नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ डिजास्टर मैनेजमेंट की स्थापना की है। सरकार आपदा प्रबंधन के तरीको के विषय में स्थानीय लोगो को जागरूक कर रहा है। इस मिशन में कई युवा संगठन जैसे एनसीसी, NRSC , ICMR इत्यादि अपना जरुरी दायित्व निभा रहे है। सरकार इन आपदाओं के असर को कम करने के उद्देश्य से फंड इत्यादि का आयोजन कर रहे है। अलग अलग संस्थान भी इससे जुड़े हुए है।
बाढ़ तब आता है जब जल स्रोत अत्यधिक बढ़ जाए , बर्फ का अधिक पिघलना भी बाढ़ का कारण है। नदियों में पानी का स्तर बढ़ता है जिससे बाढ़ आती है और कई क्षेत्रों को बुरी तरीके से प्रभावित करती है। कई लोग डूबकर मर जाते है और कई प्रकार की जानलेवा बीमारियां फैलती है। हालत इतने खराब हो जाते है कि लोगो को पीने का पानी भी नसीब नहीं हो पाता है। जान माल का भयंकर नुकसान होता है। बाढ़ के पानी से मिटटी की उर्वरक शक्ति ख़त्म हो जाती है। बाढ़ फसलों को नुकसान पहुंचाती है और उपजाऊ मिटटी अपने संग बहाकर ले जाती है।
बाढ़ को रोकने के लिए वृक्षारोपण करना अनिवार्य है। अच्छी गुणवत्ता के बाँध को बनाना ज़रूरी है , इससे बाढ़ की स्थिति में संभावित क्षेत्रों को जलमग्न होने से रोका जा सकता है। बाँध में जमा जल नदियों तक पहुंचकर तबाही मचाता है। बाढ़ को रोकने के लिए उचित उपाय किये जाए तो इसे रोका जा सकता है। बाढ़ से प्रभावित हो रहे इलाको को पहचानकर उसे सूची में शामिल करना ज़रूरी है , ताकि उचित प्रबंध किये जा सके।
बाढ़ का पहले से ही अनुमान किया जाता है। वैज्ञानिक कई माप यंत्रो की मदद से बाढ़ का पता लगा लेते है | संभावित क्षेत्रों को प्रशासनों द्वारा पहले से चेतावनी दी जाती है। लोगो को उन क्षेत्रों से उनके ज़रूरी सामान इत्यादि समेत सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जाता है। बाढ़ की चेतावनी संगठन जैसे सेंट्रल वाटर कमीशन और सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभागों के माध्यम से दी जाती है|
घरो को बाढ़ जैसे क्षेत्रों से दूर बनाने की ज़रूरत है। जब लोग सुरक्षित स्थानों पर जा रहे है तो ज़रूरी सामान अपने साथ रखे। बिजली के तारो को बिलकुल ना छुए। पीड़ित लोगो को अस्पताल पहुंचाने का कार्य आपदा प्रबंधक से जुड़े लोग करते है।
सूखा भी एक भयानक प्राकृतिक विपदा है , जो कम वर्षा के कारण होती है। लोगो को पीने के लिए जल नहीं मिलता है। तालाब और जलाशय के पानी सुख जाते है और लोगो में हाहाकार मच जाता है। किसानो के खेत सूखे के कारण बर्बाद हो जाते है। सूखे का बुरा प्रभाव खेतो पर पड़ता है। सबसे अधिक गरीब मज़दूर और किसानो के परिवार इस आपदा से प्रभावित होते है। भूमिगत जल स्तर कम हो जाता है।