मातृभूमि का गुणगान करने के लिए कवि क्या करना चाहते हैं?
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मातृभूमि का गुणगान करते हुए कवि कहना चाहते हैं कि यह भारतवर्ष जो वन संपदा, खनिज संपत्तियों, और महान विभूतियों से भरे हुए हैं, कवि मातृभूमि को शत शत नमन करते हैं।
Explanation:
- यह प्रश्न मातृभूमि कविता से लिया गया है जो श्री भगवतीचरण वर्मा द्वारा रचित है, कवि कहते है, हे मां! जो भी इस मातृभूमि के लिए शहीद हुए हैं उन अमर वीर सपूतों को तूने ही जन्म दिया है इसलिए हे भारत मां तुम्हें शत-शत बार प्रणाम है।
- तुम्हारे अंतर ह्रदय में गांधी बुद्ध, और राम विराजमान है इसलिए हे मां तुम्हें शत-शत बार प्रणाम है।
- कवि भारत की वन संपदा का बखान करते हुए कहते हैं कि तेरी धरती हरे हरे फसलों से भरी पड़ी है, तेरे उपवन फूलों से भरे हैं और वन औषधियों से जड़ित हैं।
- कवि इस भारतवर्ष में उन खनिज संपदाओं का वर्णन करते हुए कहते हैं कि यह भारत भूमि खनिजों से भरा हुआ जिसे, तुम मुक्त हस्त से हम देशवासियों में वितरण कर रही हो।
- हमारे देश में तुम्हारी कृपा से सुख -संपत्ति, धन-धान्य, किसी भी वस्तु की कमी नहीं है इसलिए हे मातृभूमि तुम्हें शत-शत बार प्रणाम है।
- कवि फिर कहते हैं हे जननी! तुम्हारे एक हस्त में न्याय पताका लहरा रही है, तो दूसरे हस्त में ज्ञान रूपी दीपक जल रहा है, हे मां तुम्हें हम कोटि-कोटि प्रणाम करते हैं, हे मां इस संसार को इस रूप में परिवर्तित कर दो कि पूरे देश अर्थात् गांव, नगर, महानगर सभी स्थानों से एक ही नाम की गूंज हो "जय हिंद", हे मातृभूमि तुझे शत शत प्रणाम है।
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