मातृभूमि और मातृभाषा होते स्वर्ग समान पर निबंध
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मातृभूमि
प्रस्तावना:
हर किसी के जीवन में अपने मातृभूमि का विशेष महत्व होता हैं | अगर हम अपनी मातृभूमि के बारे में बताना चाहे तो जितना बताएँगे उतना कम हैं | किसी भी देश की मातृभूमि यह स्वर्ग से भी महान होती हैं |
इसलिए ऐसा कहा गया हैं की – ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ अर्थात माँ और जन्मभूमि यह स्वर्ग से बढ़कर होते हैं क्योंकि स्वर्गलोक यह काल्पनिक हैं परन्तु हम सभी को अपने मातृभूमि का सुख जीवन में मिलता हैं |
हर एक व्यक्ति का जन्म जहाँ पर होता हैं, वह उसकी मातृभूमि होती हैं | उसे अपनी मातृभूमि बहुत प्यारी लगती हैं | उसी तरह भारत यह मेरी मातृभूमि हैं |
मातृभूमि का अर्थ –
जिस व्यक्ति का जन्म जहाँ पर होता हैं और उस भूमि की गोद में पलकर बड़ा होता हैं और उसे अपनी माँ के समान मानता हैं उसे उसकी ‘मातृभूमि’ कहा जाता हैं |
हर किसी को अपने मातृभूमि से बहुत प्यार होता हैं | उसी तरह यह भारतभूमि हमारी माँ हैं और सब सभी उसकी संताने हैं |
मातृभाषा
गांधीजी देश की एकता के लिए यह आवश्यक मानते थे कि अंग्रेजी का प्रभुत्व शीघ्र समाप्त होना चाहिए। वे अंग्रेजी के प्रयोग से देश की एकता के तर्क को बेहूदा मानते थे। सच्ची बात तो यही है कि भारत विभाजन का कार्य अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोगों की ही देन है। गांधी जी ने कहा था- "यह समस्या 1938 ई. में हल हो जानी चाहिए थी, अथवा 1947 ई. में तो अवश्य ही हो जानी चाहिए थी।" गांधी जी ने न केवल माध्यम के रूप में अंग्रेजी भाषा का मुखर विरोध किया बल्कि राष्ट्रभाषा के प्रश्न पर भी राष्ट्रीय एकता तथा अखण्डता को प्रकट करने वाले विचार प्रकट किए। उन्होंने कहा था,
यदि स्वराज्य अंग्रेजी बोलने वाले भारतीयों को और उन्हीं के लिए होने वाला हो तो नि:संदेह अंग्रेजी ही राष्ट्रभाषा होगी। लेकिन अगर स्वराज्य करोड़ों भूखों मरने वालों, करोड़ों निरक्षरों, निरक्षर बहनों और पिछड़ों व अत्यंजों का हो और इन सबके लिए होने वाला हो, तो हिंदी ही एकमात्र राष्ट्रभाषा हो सकती है।
घर पर मातृभाषा बोलने वाले बच्चे मेधावी होते हैं संपादित करें
विदेश में रहने वाले बच्चे जो अपने घर में परिवार वालों के साथ मातृभाषा में बात करते हैं और बाहर दूसरी भाषा बोलते हैं, वह ज्यादा बुद्धिमान होते हैं। एक नए अध्ययन से यह जानकारी मिली है। ब्रिटेन के यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के शोधकर्ताओं ने शोध में पाया कि जो बच्चे स्कूल में अलग भाषा बोलते हैं और परिवार वालों के साथ घर में अलग भाषा का इस्तेमाल करते हैं, वे बुद्धिमत्ता जांच में उन बच्चों के मुकाबले अच्छे अंक लाए जो सिर्फ गैर मातृभाषा जानते हैं। इस अध्ययन में ब्रिटेन में रहने वाले तुर्की के सात से 11 साल के 1999 बच्चों को शामिल किया गया। इस आईक्यू जांच में दो भाषा बोलने वाले बच्चों का मुकाबला ऐसे बच्चों के साथ किया गया जो सिर्फ अंग्रेजी बोलते हैं।
दुनिया में मौलिकता का ही महत्व है संपादित करें
मौलिक लेखन, चिंतन या रचनात्मकता को दुनिया भर में नोट किया जाता है। दुनिया में आज भी भारत की पहचान यहां की भाषा में लिखित उपनिषद, ब्रह्मसूत्र, योगसूत्र, रामायण, महाभारत, नाट्यशास्त्र आदि से है जो मौलिक रचनाएँ हैं। नीरद चौधरी, राजा राव, खुशवन्त सिंह जैसे लेखकों से नहीं। समाज की रचनात्मकता और मौलिकता अनिवार्यत: उसकी अपनी भाषा से जुड़ी होती है। दुनिया में मौलिकता का महत्व है, माध्यम का नहीं। इसलिए यदि स्वतंत्र भारत में मौलिक चिन्तन, लेखन का ह्रास होता गया तो उसका कारण 'अंग्रेजी का बोझ' है। मौलिक लेखन, चिन्तन विदेशी भाषा में प्रायः असंभव है। कम से कम तब तक, जब तक ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका की मूल सभ्यता की तरह भारत सांस्कृतिक रूप से पूर्णत: नष्ट नहीं हो जाता और अंग्रेजी यहां सबकी एक मात्र भाषा नहीं बन जाती। तब तक भारतीय बुद्धिजीवी अंग्रेजी में कुछ भी क्यों न बोलते रहें, वह वैसी ही यूरोपीय जूठन की जुगाली होगी, जिसकी बाहर पूछ नहीं हो सकती।[2]