Hindi, asked by saanvikhanna1798, 3 months ago

मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम
ऐ अमरों की जननी, तुमको शत-शत बार प्रणाम,
मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।
तेरे उर में शायित गांधी, 'बुद्ध औ' राम,
मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।

हिमगिरि-सा उन्नत तव मस्तक,
तेरे चरण चूमता सागर,
श्वासों में हैं वेद-ऋचाएँ
वाणी में है गीता का स्वर।
ऐ संसृति की आदि तपस्विनि, तेजस्विनि अभिराम।
मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।

हरे-भरे हैं खेत सुहाने,
फल-फूलों से युत वन-उपवन,
तेरे अंदर भरा हुआ है
खनिजों का कितना व्यापक धन।
मुक्त-हस्त तू बाँट रही है सुख-संपत्ति, धन-धाम।
मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।

प्रेम-दया का इष्ट लिए तू,
सत्य-अहिंसा तेरा संयम,
नयी चेतना, नयी स्फूर्ति-युत
तुझमें चिर विकास का है क्रम।
चिर नवीन तू, ज़रा-मरण से -
मुक्त, सबल उद्दाम, मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।
Please explain this poem in detail:

एक हाथ में न्याय-पताका,
ज्ञान-द्वीप दूसरे हाथ में,
जग का रूप बदल दे हे माँ,
कोटि-कोटि हम आज साथ में।
गूँज उठे जय-हिंद नाद से -
सकल नगर औ' ग्राम, मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।

Answers

Answered by bhatiamona
14

प्रश्न में दी गई कविता का नाम है ,मातृभूमि' कविता  भगवती चरण वर्मा जी द्वारा लिखी गई है।

इस कविता में कवि हमारी मातृभूमि की प्रशंसा करते हुए कहता है कि हे मातृभूमि हम तुम्हें  शत-शत प्रणाम करते हैं क्योंकि  तुमने वीर जवानों  को जनम दिया है। तुम धन्य हो। तुम वंदना के योग्य हो क्योंकि तुम्हारे हृदय में गांधी, बुद्ध और राम जैसे महापुरुष निद्रित है। जिन्होंने इस भारतवर्ष को जगत प्रसिद्ध तथा पुण्य भूमि बनाया है। इस लिए हम तुम्हें  ह्र्दय से  प्रणाम करते हैं। कवि कहता है कि तेरे खेत हरे भरे है। तेरे वन भी फूलों तथा फलों से भरे पड़े हैं। तुमने अपनी कृपा से हमें अन्न प्रदान किया है। आकाश और धरती मिलकर मातृभूमि का रंग नीला-और हरा है I दूर दूर तक सागर की लहरें अंतर्मन के चलने जैसी है I पूरी हरियाली  भारत को समेटकर भारतवासियों के कण-कण में बसी हुई है I

हे माँ तुम्हारे एक हाथ में न्याय पताका है और दूसरे हाथ में दीप है अर्थात् तुम न्याय के साथ ज्ञान भी दे रही हो, इसीलिए हम तुम्हें कोटी कोटी प्रणाम करते है।

Answered by ranagauri92
6

Answer:

तृ-भू, शत-शत बार प्रणाम

ऐ अमरों की जननी, तुमको शत-शत बार प्रणाम,

मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।

तेरे उर में शायित गांधी, 'बुद्ध औ' राम,

मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।

हिमगिरि-सा उन्नत तव मस्तक,

तेरे चरण चूमता सागर,

श्वासों में हैं वेद-ऋचाएँ

वाणी में है गीता का स्वर।

ऐ संसृति की आदि तपस्विनि, तेजस्विनि अभिराम।

मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।

हरे-भरे हैं खेत सुहाने,

फल-फूलों से युत वन-उपवन,

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