मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम!
अमरों की जननी, तुमको शत-शत बार प्रणाम!
मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम ।
तेरे उर में शायित गांधी, बुद्ध और राम,
मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम ।
हरे-भरे हैं खेत सुहाने,
फल-फूलों से युत वन-उपवन,
तेरे अंदर भरा हुआ है
खनिजों का कितना व्यापक धन ।
मुक्त-हस्त तू बॉट रही है
सुख-संपत्ति, धन-धाम,
मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम ।
एक हाथ में न्याय-पताका,
ज्ञान-दीप दूसरे हाथ में,
जग का रूप बदल दे, हे माँ,
कोटि-कोटि हम आज साथ में।
गूंज उठे जय-हिंद नाद से
सकल नगर और ग्राम,
मात-भू, शत-शत बार प्रणाम।
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Very nice poem bro Love it.. You have composed it???
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