मातृभाषा कि घटती अभिरुचि पर 300 शब्दों का निबंध
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गांधीजी देश की एकता के लिए यह आवश्यक मानते थे कि अंग्रेजी का प्रभुत्व शीघ्र समाप्त होना चाहिए। वे अंग्रेजी के प्रयोग से देश की एकता के तर्क को बेहूदा मानते थे। सच्ची बात तो यही है कि भारत विभाजन का कार्य अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोगों की ही देन है। गांधी जी ने कहा था- "यह समस्या 1938 ई. में हल हो जानी चाहिए थी, अथवा 1947 ई. में तो अवश्य ही हो जानी चाहिए थी।" गांधी जी ने न केवल माध्यम के रूप में अंग्रेजी भाषा का मुखर विरोध किया बल्कि राष्ट्रभाषा के प्रश्न पर भी राष्ट्रीय एकता तथा अखण्डता को प्रकट करने वाले विचार प्रकट किए। उन्होंने कहा था,
यदि स्वराज्य अंग्रेजी बोलने वाले भारतीयों को और उन्हीं के लिए होने वाला हो तो नि:संदेह अंग्रेजी ही राष्ट्रभाषा होगी। लेकिन अगर स्वराज्य करोड़ों भूखों मरने वालों, करोड़ों निरक्षरों, निरक्षर बहनों और पिछड़ों व अत्यंजों का हो और इन सबके लिए होने वाला हो, तो हिंदी ही एकमात्र राष्ट्रभाषा हो सकती है।
यदि स्वराज्य अंग्रेजी बोलने वाले भारतीयों को और उन्हीं के लिए होने वाला हो तो नि:संदेह अंग्रेजी ही राष्ट्रभाषा होगी। लेकिन अगर स्वराज्य करोड़ों भूखों मरने वालों, करोड़ों निरक्षरों, निरक्षर बहनों और पिछड़ों व अत्यंजों का हो और इन सबके लिए होने वाला हो, तो हिंदी ही एकमात्र राष्ट्रभाषा हो सकती है।
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मातृभाषा की घटती अभिरुचि इसलिए हो रही है क्योंकि आज के समय में हर व्यक्ति नई नई तरह की भाषाओं में रुचि ले रहा है I हर कोई अन्य भाषा सीखने के लिए उत्साहित रहता है I अपनी मातृभाषा में किसी को कोई रुचि ही नहीं है I ऐसा इसलिए हो रहा हैं क्योंकि लोगो में दूसरी भाषा सिखने की रुचि बहुत बढ़ रही हैं जैसे की भारतवर्ष में युवा पीढ़ी अंग्रेजी भाषा सिखने में ज्यादा दिलचस्पी लेती हैं और अपनी मात्रा भाषा हिंदी को हींन भाषा समझती हैं I इसी प्रकार जिस व्यक्ति को अन्य भाषा नहीं आती वह भी दूसरे दूसरे व्यक्ति की होड़ में अपनी भाषा को छोड़कर दूसरी भाषा के पीछे भाग रहा है I
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