मातृभाषया व्याख्यायेताम्-
(क) देवपितकार्याभ्यां न प्रमदितव्यम्।
(ख) यान्यनवद्यानि कर्माणि तानि सेवितव्यानि।
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What is this...........
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मातृभाषा मतलब मां की भाषा? बाजार की भाषा, स्कूल की भाषा, या फिर घर की भाषा? समझ नहिं आवत है हम का कहीं का न कहीं। ऐतना ज़रूर बुझाता कि कछु होवे करि मातरि भाखा। हम न मरिब मरिहैं संसारा कबीर ने सदियों पहले कहा था। ठीक वैसे ही भाषाएं जन्मती हैं और अपनी मौत भी मरती हैं। हमें शायद फर्क नहीं पड़ता। हमारे बीच से भाषा मरे या बोली वाणी। हम तो वैसे ही जीया करेंगे। हमरा के बुझा तनइखे। तोहरा के कुछ बुझाइल का? इसी तरह बोलियां, भाषाएं आपस में गलबहियां करती हुई इस बहुभाषी समाज में हमारी संवेदनाओं को जिंदा रखा करती हैं। हालांकि भाषायी शुद्धतावादी इसे गै़र ज़रूरी मानते हैं और मानते हैं कि भाषा को साफ सफ्फाक होना ही चाहिए। भाषा में किसी भी दूसरी भाषा की आवाजाही ठीक नहीं। इससे भाषाएं खराब होती हैं। जबकि हमें मालूम है कि हमारा भारतीय समाज बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक समाज का अचूक उदाहरण है।