माँ
तुम्हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन,
किंतु इतना कर रहा, फिर भी निवेदन,
थाल में लाऊँ सजाकर भाल मैं जब भी,
कर दया स्वीकार लेना, यह समर्पण।
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Tumhara Runa bahut hi Mahan ki Chintu Pintu Itna kar rahe ho Fir Bhi nivedan Tha Mela Saja kar Bahar Main Jab Bhi kar diya Shikar Lena yaar Samarpan
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मां तुम्हारा ऋण बहुत है मैं किचन किंतु इतना कर रहा फिर भी निवेदन थाल में लाऊं सजाकर भाल में जब भी कर दिया शिकार लेना यह समर्थन वाक्य कीजिए
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