Hindi, asked by savitraannapurve, 8 hours ago

माता - पिता के प्रति संतान का कर्तव्य इस विषय पर अपने विचार लिखिए।(निबंध लिखिए)
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Answered by patilhimanshu434
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Answer:

वर्तमान समय के पुत्र माता-पिता की कैसी सेवा करने वाले और कैसे भक्त हैं, यह तो प्रत्येक विवेकी व्यक्ति समझ सकता है। शास्त्रों का तो कथन है कि ‘संसार में बसने वाली आत्मा यदि क्षुद्र स्वार्थ के वशीभूत होकर अपने माता-पिता की अवज्ञा करे तो उसके समान कोई दुष्ट नहीं है।’

माता-पिता की आज्ञा पर अपनी अनेक पाप पूर्ण लालसाओं को ठोकर मारने वाले कितने पुत्र हैं? जिनेश्वर भगवान की आज्ञा पालन करने वाले विवेकी सुपुत्र अपने माता-पिता की आज्ञा की अवहेलना कर के एक कदम भी आगे नहीं चलते थे। आज तो लोभ के कारण, धन के लिए माता-पिता की आज्ञा का उलंघन करने वालों की कमी नहीं है। भाई को यदि पिता की सम्पत्ति में हिस्सा नहीं देना हो तो तुरन्त वकील से सम्पर्क करते हैं ताकि भाई को नोटिस दिया जा सके। पडौसी भी ऐसे होते हैं कि जो यही परामर्श देते हैं कि ‘यह भाई तो ऐसा ही है, इसे तो मजा चखाना ही चाहिए।’ आजकल तो अपने लालच के लिए बेटे मां-बाप को भी नोटिस दे देते हैं। और मां-बाप हैं कि बच्चों के प्रति मोह में अटके रहते हैं। अरे, ऐसा जीवन आने से पहले ही संसार त्याग कर बाहर निकल जाएं तो क्या आपत्ति है? जिन्हें दया आती हो उन्हें ऐसे माता-पिता की आज्ञा का पालन नहीं करने वाले अयोग्य एवं कुपुत्रों से आज्ञा मनवानी चाहिए। संसार का मौज-शौक त्याग कर संयम अंगीकार करें, वही दया और वही आज्ञा की बात है।

माता-पिता की सेवा किस तरह करनी चाहिए और कैसी करनी चाहिए? उन्हें आप स्वयं स्नान कराएं, उन्हें खिलाकर खाएं, उन्हें नींद आने पर आप सोएं, उनसे पहले आप जग जाएं, जब वे सोएं तब उनकी चरण-सेवा करें, उठते समय भी उनकी चरण-सेवा करें, मधुर स्वर में उन्हें जगाएं और तुरन्त चरणों में नमस्कार करें। क्या यह सब आप करते हैं? आप तो यदि खाने की कोई उत्तम वस्तु लाते हैं, तो स्वयं खा जाते हैं और ऊपर से यह कहते हैं कि ‘उस बुड्ढे को क्या खिलाना है?’ माता-पिता के लिए राज्य-सिंहासन को ठोकर मार देने के भी शास्त्रों में दृष्टांत हैं। माता-पिता चौबीसों घण्टे धर्म की आराधना कर सकें, ऐसी व्यवस्था पुत्रों को अवश्य करनी ही चाहिए। यहां जो बात है वह आत्म-कल्याण संबंधी है। यदि मोह घटाना हो तो ही माता-पिता से बिछुडने की बात है। स्वार्थ वश माता-पिता की आज्ञा का उलंघन कर के अलग रहने वाले पुत्र तो कृतघ्नी ही होते हैं। शास्त्रों में तो पुत्र के लिए कर्तव्य बताया गया है कि स्वयं सुमार्ग पर चलकर माता-पिता को भी सुमार्ग की ओर, धर्म की ओर मोडे तो ही उनके उपकार का बदला चुकाया जा सकता है। माता-पिता मोहवश पुत्र को सुमार्ग पर जाने से रोके तो एक बार उनकी अवज्ञा कर के भी स्वयं सुमार्ग पर दृढ हों और फिर उन्हें भी सुमार्ग की ओर उन्मुख करें।

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Answered by anirudhayadav393
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Concept Introduction: निबंध चीजों को व्यक्त करने का एक तरीका है।

Explanation:

We have been Given: माता - पिता के प्रति संतान का कर्तव्य इस विषय पर अपने विचार लिखिए।(निबंध लिखिए)

We have to Find: माता - पिता के प्रति संतान का कर्तव्य इस विषय पर अपने विचार लिखिए।(निबंध लिखिए)

अपने विचारों और भाषणों और व्यवहार दोनों में अपने माता-पिता का सम्मान करें। अपने हृदय में उनके बारे में अनादर या तिरस्कारपूर्वक विचार न करें। उनसे या उनके बारे में अनादर से, अशिष्टता से, अश्रद्धापूर्वक, या चतुराई से न बोलें।

Final Answer: अपने विचारों और भाषणों और व्यवहार दोनों में अपने माता-पिता का सम्मान करें। अपने हृदय में उनके बारे में अनादर या तिरस्कारपूर्वक विचार न करें। उनसे या उनके बारे में अनादर से, अशिष्टता से, अश्रद्धापूर्वक, या चतुराई से न बोलें।

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