'' माता पिता का सम्मान ईश्वर उपासना के समान है'' पर अनुछेद लिखें।
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माता-पिताकी सेवा ईश्वर की सेवा के समान है। माता-पिता की सेवा करने से सच्चे सुख की प्राप्ति होती है। जीवन में खुशहाली लाने के लिए उनके साथ सदैव प्रेमपूर्वक व्यवहार करना चाहिए। हमारे पहले गुरू माता-पिता होते हैं। मनुष्य का जैसा रिश्ता माता-पिता से होता है, वैसा ही गुरू से होना चाहिए। यह कहना है निरंकारी महात्मा मुंशीराम अरोड़ा का। वे महम रोड स्थित निरंकारी सत्संग भवन में उपदेश दे रहे थे।
उन्होंने कहा कि मनुष्य का प्रथम गुरू उसके माता-पिता होते हैं। माता-पिता ही मनुष्य को सतगुरू की शरण में लेकर जाते हैं, जहां से उसे ज्ञान की प्राप्ति होती है। गुरू की शरण में आने से मनुष्य को परमात्मा का ज्ञान होता है। परमात्मा को जानने से मनुष्य के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव होता है। उसके जीवन के सभी अंधकार नष्ट हो जाते हैं। मनुष्य का जीवन ज्ञान रूपी प्रकाश से प्रकाशवान हो जाता है। उन्होंने कहा कि हमें गुरू के साथ-साथ अपने माता-पिता की भी सेवा करनी चाहिए। समाज सेवी बनने से पूर्व घर में परिवार के सदस्यों का सम्मान करना चाहिए। सतगुरू सदैव दूसरों का सम्मान करने का संदेश देते हैं। इससे मनुष्य के विकारों का नाश होता है।
गोहाना | उत्तमनगर में गायत्री जयंती पर विभिन्न सामाजिक संगठनों ने यज्ञ का आयोजन किया संगठन के पदाधिकारियों ने यज्ञ में आहुति डालकर विश्व शांति की दुआ मांगी। राष्ट्रीय वैदिक परमार्थ ट्रस्ट के महासचिव प्रेमलाल आर्य ने लोगों को गायत्री के महत्व के बारे में बताया।
उन्होंने कहा कि गायत्री चारों वेदों में पाया जाने वाला एक महामंत्र है। इस महामंत्र की प्रेरणा केवल इतनी है कि बुद्धि को शुद्ध रखा जाए। यदि मनुष्य की बुद्धि विकृत हो जाती है तो संकट एवं विपदाएं उसे घेर लेती हैं। गायत्री मंत्र के जाप से मन एवं बुद्धि पर नियंत्रण किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि गायत्री मंत्र में 24 अकसर हैं। प्रत्येक अक्सर में एक-एक देवी देवता एवं उनके अवतारों का सार है। इसके उच्चारण मात्र से ही जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। मनुष्य को अपने कर्म धर्म के अनुसार करने चाहिए। धर्म के अनुसार किया गया कर्म विशेष फलदायी होता है। कर्म करते समय मनुष्य को फल की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मनुष्य को फल उसके द्वारा किए गए कर्मों के अनुसार ही मिलता है। इस अवसर पर आजाद हिंद देशभक्त मोर्चा के संरक्षक आजाद सिंह दांगी, र| सिंह लठवाल, सुधीर कुमार, मनीष कुमार, मंजू बाला, सुशीला देवी आदि उपस्थित थे।
इस धरती पर हमारे माता-पिता ही साक्षात ईश्वर रूपी अंश हैं। माता-पिता की सेवा करना ईश्वर की आराधना का दूसरा नाम है। आज माता-पिता को गंगाजल नहीं, केवल नल के जल की जरूरत है। यदि हम समय पर उनकी प्यास बुझा सके तो इसी धरती पर स्वर्ग है। यह विचार शहर के बूंदाबहू मंदिर में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के दौरान पंडित रवि शास्त्री ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि एक संत ने पवित्र गंगाजल भगवान शिव पर चढ़ाने की बजाय गर्मी से तपड़ते एक बैल को पिला दिया था। जिससे भगवान ने उन्हें दर्शन देकर उनका उद्धार किया। उन्होंने कहा कि हमें हमें भगवान से संसार रूपी धन नहीं मांगना चाहिए। बल्कि यह मांगना चाहिए कि हे प्रभु मेरा चित्त निरंतर आपके चरण कमलों में लगा रहे। मैं आपको कभी भूलूं नहीं। श्रीकृश्ण की लीलाएं अनंत हैं, उनकी महिमा अपार है। उन्होंने कहा कि इस कथा का आध्यात्मिक रहस्य यह है कि जीव और परमात्मा के बीच अज्ञान व वासना का परदा है। वासना का विनाश होने पर ही कृष्ण मिलन संभव हैं। हृदय में ज्ञान का दीपक जलाने वाले गुरूदेव साक्षात भगवान ही हैं। इसलिए जीवन में किसी सदगुरू का वरण करो। बिना सदगुरू के आप परमात्म तत्व का ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते। उन्होंने कहा इस संसार में कई लोक हैं। भूलोक के चारों ओर अनेक द्वीप व समुद्र हैं। इन सभी में लाखों जीव निवास करते हैं। इन जीवों को भगवान से ही गति मिल रही हैं। जीव चाहे कितना भी बड़ा हो या फिर छोटा हो, जब तक उसमें प्राण हैं तभी तक वह जिंदा रह सकता है।