मूत्र बनने की मात्रा किस प्रकार नियंत्रित की जाती है
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जल की मात्रा पुनरावशोषण शरीर में उपलब्ध अतिरिक्त जल की मात्रा पर तथा कितना जल की मात्रा पर तथा कितनी विलेय वयं उत्सर्जित करना है, पर निर्भर करता है।
(2) जैसे गर्मी के दिनों में शरीर से अत्यधिक पसीने के द्वारा जल एवं लवण निष्कासित होते हैं। इसलिए वृक्क के द्वारा छने हुए मूत्र में विद्यमान जल एवं लवण की अधिकांश मात्रा पुनः अवशोषित कर ली जाती है। अतः मूत्र कम मात्रा में उत्सर्जित होते हैं, इसके विपरीत सर्दियों में कम पसीना आता है, इसलिए मूत्र अधिक बनता है। जल एवं लवण पुनरवशोषण हार्मोन के द्वारा नियंत्रित होते हैं।
(3) अतः मूत्र निर्माण पर नियंत्रण रक्त के ऑसमोटिक सन्तुलन को भी बनाए रखता है।
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