मेट्रो के खंभे के नीचे रात गुजारे परभेसूरा दीदा नफाड़ेशए देखता गाँव देखता डकुर-टुकुरी इधुर शहर मेसाश आत्यम आँख खुली बस दौड रहा वहा रेडिओ पर स्टेशन शम्दीन जाह रहा। उनकी बात सुनी है जबसे दित्य कस्ता है धुकुर-पुकुर ।
१. इस कविता की पंगतियो मे आहे लयात्मक शब्दो की दो दो जोडिया लिखिये.
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