मंत्री की दृष्टि में याचक कौन था और दाता कौन था?
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राजा दशरथ जब अपने चारों बेटों की बारात लेकर राजा जनक के द्वार पर पहुंचे तो राजा जनक ने सम्मानपूर्वक बारात का स्वागत किया।
तभी दशरथजी ने आगे बढ़कर जनकजी के चरण छू लिए।
चौंककर जनकजी ने दशरथजी को थाम लिया और कहा- 'महाराज, आप बड़े हैं, वरपक्ष वाले हैं, ये उल्टी गंगा कैसे बहा रहे हैं?'
इस पर दशरथजी ने बड़ी सुंदर बात कही- 'महाराज, आप दाता हैं, कन्यादान कर रहे हैं। मैं तो याचक हूं, आपके द्वार कन्या लेने आया हूं। अब आप ही बताएं कि दाता और याचक दोनों में कौन बड़ा है?'
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