मंत्रिपरिषद् पर नियंत्रण कैसे रखा जा सकता है?
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यद्यपि सैद्धांतिक रूप से संविधान द्वारा प्रदान की गई समस्त कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित है तथापि यथार्थ में कार्यपालिका की समस्त सत्ता मंत्रिपरिषद में निहित होती है। वास्तव में शासन की सभी शक्तियों का प्रयोग मंत्रिपरिषद ही करती है।
संविधान के अनुच्छेद-74 में यह उल्लिखित है कि राष्ट्रपति को उसकी शक्तियों को प्रयोग करने में सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी जिसका प्रधान, प्रधानमंत्री होगा और राष्ट्रपति इसकी सलाह के अनुसार कार्य करेगा। लेकिन राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह पर पुनर्विचार करने की अपेक्षा कर सकता है। राष्ट्रपति ऐसे पुनर्विचार के बाद दी गई सलाह के अनुसार ही कार्य करेगा।
संघीय स्तर पर संवैधानिक तंत्र के अवरुद्ध हो जाने तथा राष्ट्रपति के सीधे शासन के परिप्रेक्ष्य में कोई उपबंध नहीं है, जैसा कि राज्यों के लिए अनुच्छेद-356 में उल्लिखित है।
विशेषतया 42वें एवं 44वें संवैधानिक संशोधनों के बाद राष्ट्रपति के लिए यह बाध्यकारी हो गया है कि वह मंत्रिपरिषद के परामर्श को स्वीकार करे। लेकिन राष्ट्रपति द्वारा मंत्रिपरिषद की सलाह की स्वीकृति कोई स्वतः यांत्रिक प्रक्रिया नहीं है। राष्ट्रपति को यह अधिकार प्रदान किया गया है कि वह उस पर विचार करते समय अपनी बुद्धि का प्रयोग करे। 44वां संशोधन राष्ट्रपति को इस बात का अवसर प्रदान करता है कि वह मंत्रिपरिषद को सलाह एवं चेतावनी दे और किसी मामले पर पुनर्विचार किए जाने का आग्रह करे और उसके उपरांत ही प्रस्तावित कार्यविधि को स्वीकार करे और उस पर अपने अनुमोदन की मोहर लगाए।
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