मित्रों से अपनी व्यथा कहते समय हम बहुत दुख बढ़ाकर कहते हैं जो बातें पढ़ने की समझी जाती है उनकी चर्चा करने से एक तरह का अपनापन होता है हमारे मित्र समझते हैं हम से जरा भी बुरा नहीं रखता है और उन्हें हमसे सहानुभूति हो जाती है अपनापन दिखाने की आदत हो तो में अधिक होती है इसकी सप्रसंग गद्यांश व्याख्या कीजिए
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मित्रों से अपनी व्यथा कहते समय हम बहुत दुख बढ़ाकर कहते हैं जो बातें पढ़ने की समझी जाती है उनकी चर्चा करने से एक तरह का अपनापन होता है हमारे मित्र समझते हैं हम से जरा भी बुरा नहीं रखता है और उन्हें हमसे सहानुभूति हो जाती है अपनापन दिखाने की आदत हो तो में अधिक होती है |
सप्रसंग : यह गद्यांश गबन उपन्यास से लिया गया है | गबन उपन्यास मुंशी प्रेमचन्द द्वारा लिखा गया है | गबन में टूटते मूल्यों के अंधेरे में भटकते मध्यवर्ग का वास्तविक चित्रण किया गया। गद्यांश में मित्रों के बारे में बताया गया है |
व्याख्या : जब हम अपने मित्रों से अपना दुःख बांटते है , तब हम अपन दुःख को बहुत बड़ा कर बताते है | दोस्तों को अपना दुःख बताने से हमारा दिल हल्का हो जाता है | हमें अपनापन महसूस होता है | हमारा दुःख कम होता है | हमारे मित्र हमारी बातों को समझते है और हमें जरा भी बुरा नहीं लगता है | उनसे हमें सहानुभूति और सहारा मिलता है |