मित्रक दुख रज मेरु समाना निबंध
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मित्रक दु:ख राज मेरु समाना॥ रामचरितमानस की यह चौपाई कहती है कि जो मनुष्य अपने मित्र के कष्ट को अपना कष्ट या दुख नहीं समझता है, ऐसे लोगों को देखने मात्र से पाप लगता है। ... रामचरितमानस के अनुसार, जो लोग स्वाभाव से कम बुद्धि के होते हैं, मूर्ख होते हैं ऐसे लोगों को आगे बढ़कर कभी किसी के साथ मित्रता नहीं करनी चाहिए।
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mitral dukh rj meri samana nibhand
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