Hindi, asked by preetyshaw06, 2 months ago

मैं तो सांवरे के रंग राची।
साजि सिंगार बांधि पग घूंघरू, लोक-लाज तजि नाची।।
गई कुमति, लई साधुकी संगति, भगत रूप भइ सांची।
गाय गाय हरि के गुण निसदिन,कालव्यालसूं बांची।।
उण बिन सब जग खारो लागत, और बात सब कांची।
मीरा श्रीगिरधरन लालसूं, भगति रसीली जांची।।1।। meaning?​

Answers

Answered by geetagupta8533
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Answer:

शब्दार्थ- साँची = सत्य । ब्याल = सर्प । खारो = नीरस, व्यर्थ । काँची = कच्ची, (क्षणभंगुर)। जाँची = प्रतीत हुई।

शब्दार्थ- साँची = सत्य । ब्याल = सर्प । खारो = नीरस, व्यर्थ । काँची = कच्ची, (क्षणभंगुर)। जाँची = प्रतीत हुई।सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं मीराबाई द्वारा रचित ‘पदावली’ से उद्धृत है।

शब्दार्थ- साँची = सत्य । ब्याल = सर्प । खारो = नीरस, व्यर्थ । काँची = कच्ची, (क्षणभंगुर)। जाँची = प्रतीत हुई।सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं मीराबाई द्वारा रचित ‘पदावली’ से उद्धृत है।प्रसंग- इस पद में मीरा भगवान् कृष्ण के प्रेम में निमग्न होकर पूर्णरूप से उन्हीं के रंग में रंग गयी हैं, इसलिए संसार की अन्य किसी वस्तु में उनका मन नहीं लगता।

शब्दार्थ- साँची = सत्य । ब्याल = सर्प । खारो = नीरस, व्यर्थ । काँची = कच्ची, (क्षणभंगुर)। जाँची = प्रतीत हुई।सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं मीराबाई द्वारा रचित ‘पदावली’ से उद्धृत है।प्रसंग- इस पद में मीरा भगवान् कृष्ण के प्रेम में निमग्न होकर पूर्णरूप से उन्हीं के रंग में रंग गयी हैं, इसलिए संसार की अन्य किसी वस्तु में उनका मन नहीं लगता।व्याख्या- मीरा कहती हैं कि मैं तो साँवले कृष्ण के श्याम रंग में रँग गयी हूँ अर्थात् उनके प्रेम में आत्मविभोर हो गयी हूँ। मैंने तो लोक-लाज को छोड़कर अपना पूरा श्रृंगार किया है और पैरों में सुँघरू बाँधकर नाच भी रही हैं। साधुओं की संगति से मेरे हृदय की सारी कालिमा मिट गयी है और मेरी दुर्बुद्धि भी सद्बुद्धि में बदल गयी है और मैं श्रीकृष्ण की सच्ची भक्त बन गयी हूँ। मैं प्रभु श्रीकृष्ण का नित्य गुणगान करके (UPBoardSolutions.com) कालरूपी सर्प के चंगुल से बच गयी हूँ अर्थात् अब मैं जन्म-मरण के चक्र से छूट गयी हूँ। अब कृष्ण के बिना मुझे यह संसार निस्सार और सूना लगता है, अतः उनकी बातों के अलावा अन्य बातें व्यर्थ लगती हैं। मीराबाई को केवल श्रीकृष्ण की भक्ति में ही आनन्द मिलता है, संसार की किसी अन्य वस्तु में नहीं।

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