Science, asked by harshbenbanshi59, 1 month ago

मिट्टी की____सेमी परत तैयार होने में लगभग एक हजार वर्ष लगते हैं।​

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Answered by kiranchoudhary1107
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आम मुद्द: गोबर ग्रामीण जीवन की तकदीर बदलने के साथ खेती को बना सकता है लाभ का व्यवसाय

गोबर का इस्तेमाल ग्रामीण जीवन की तकदीर बदलने के साथ खेती को भी लाभकारी बना सकता है

नई दिल्ली [ पंकज चतुर्वेदी ]। हाल में प्रधानमंत्री ने मन की बात रेडियो कार्यक्रम में गोबर के सदुपयोग की अपील की। उन्होंने गोबरधन आर्गेनिक बायो एग्रो रिर्सोस फंड योजना की भी चर्चा करते हुए कहा कि मवेशियों के गोबर से बायो गैस और जैविक खाद बनाई जाए। उन्होंने लोगों से कचरे और गोबर को आय का स्नोत बनाने की अपील की। इस योजना की घोषणा इसी आम बजट में की गई है। इसके तहत गोबर और खेतों के ठोस अपशिष्ट पदार्थों को COMPOST, बायो-गैस और बायो-सीएनजी में परिवर्तित किया जाएगा।

खेती को लाभ का व्यवसाय बनाने में सकमें गोबर न केवल ग्रामीण जीवन की तकदीर बदल सकता है, बल्कि खेती को लाभ का व्यवसाय बनाने और ग्रामीण जीवन को प्रदूषण मुक्त बनाने में भी बड़ी भूमिका निभा सकता है। खेतों में गोबर डाला जाए और मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए केंचुओं का इस्तेमाल किया जाए तो हारी-थकी धरती को नया जीवन मिल सकता है। आधुनिक खेती के तहत रासायनिक खाद और दवाओं के इस्तेमाल से बांझ हो रही जमीन को राहत देने के लिए फिर से पलट कर देखना होगा।

सोने को चूल्हे में जलाया जा रहा है

कुछ विदेशी किसानों ने भारत की सदियों पुरानी पारंपरिक कृषि प्रणाली को अपनाकर चमत्कारी नतीजे प्राप्त किए हैं। जब यह कहा जाता है कि भारत सोने की चिड़िया था तब हम यह अनुमान लगाते हैं कि हमारे देश में पीले रंग की धातु सोने का अंबार रहा होगा। वास्तव में हमारे खेत और हमारे मवेशी हमारे लिए सोने से अधिक कीमती थे। इसी रूप में सोना अभी भी यहां के चप्पे-चप्पे में बिखरा हुआ है। दुर्भाग्य है कि उसे या तो चूल्हों में जलाया जा रहा है या फिर उसकी अनदेखी हो रही है। एक ओर ऐसा हो रहा है तो दूसरी ओर अन्नपूर्णा जननी धरा तथाकथित नई खेती के प्रयोगों से कराह रही है।

रासायनिक खाद से उपजे विकार अा रहे सामने

रासायनिक खाद से उपजे विकार अब तेजी से सामने आने लगे हैं। दक्षिणी राज्यों में सैंकड़ों किसानों की खुदकुशी करने के पीछे रासायनिक दवाओं की खलनायकी उजागर हो चुकी है। इस खेती से उपजा अनाज जहर हो रहा है। रासायनिक खाद डालने से एक दो साल तो खूब अच्छी फसल मिलती है, फिर जमीन बंजर होती जाती है। बेशकीमती मिट्टी की ऊपरी परत का एक इंच तैयार होने में दशकों लगते हैं जबकि खेती की आधुनिक प्रक्रिया के चलते यह परत 15-16 वर्ष में नष्ट हो जा रही है। रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल के कारण मिट्टी सूखी और बेजान हो जाती है। यही भूमि के क्षरण का मुख्य कारण है।

गोबर से बनी कंपोस्ट से मिट्टी नम रहती है

वहीं गोबर से बनी कंपोस्ट या प्राकृतिक खाद से उपचारित भूमि की नमी की अवशोषण क्षमता पचास फीसद बढ़ जाती है। फलस्वरूप मिट्टी नम रहती है और उसका क्षरण भी रुकता है। कृत्रिम उर्वरक यानी रासायनिक खादें मिट्टी में मौजूद प्राकृतिक खनिज लवणों को नष्ट करती हैं। इसके कारण कुछ समय बाद जमीन में जरूरी खनिज लवणों की कमी आ जाती है। जैसे नाइट्रोजन के उपयोग से भूमि में प्राकृतिक रूप से उपलब्ध पोटेशियम का तेजी से क्षरण होता है। इसकी कमी पूरी करने के लिए जब पोटाश प्रयोग में लाते हैं तो फसल में एस्कोरलिक एसिड( VITAMIN C) और केरोटिन की काफी कमी आ जाती है। इसी प्रकार सुपर फास्फेट के कारण मिट्टी में तांबा और जस्ता चुक जाता है। जस्ते की कमी के कारण शरीर की वृद्धि और लैंगिक विकास में कमी, घावों के भरने में अड़चन आदि रोग फैलते हैं। नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश उर्वरकों से संचित भूमि में उगाए गेहूं और मक्का में प्रोटीन की मात्रा 20 से 25 प्रतिशत कम होती है। रासायनिक दवाओं और खाद के कारण भूमिगत जल के दूषित होने की गंभीर समस्या भी खड़ी हो रही है।

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Answered by pariharkiran
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Answer:

Kiran Choudhary is correct.

Thankyou.

Have a good day

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