माटी वाली का एक शब्द जचत्र अपनेशब्दों मेंप्रस्तुत कीजजए |
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माटी वाली
माटी वाली अत्यंत गरीब महिला थी, जिसकी आजीविका का साधन माटाखान से लाई मिट्टी घरों तक पहुँचाना था। घर पर उसका बीमार पति अकेला रहता था। माटी वाली अपना काम अत्यंत तन्मयता से करती थी। वह सभी के घर बिना भेदभाव के लाल मिट्टी दिया करती थी।
माटी वाली की स्थिति का अनुमान कर महिलाएँ कुछ पैसों के साथ ही उसे चाय या शाम की बासी एक-दो रोटियाँ भी दे दिया करती थीं। कभी-कभी कोई महिला रोटी के साथ कुछ साग आदि देकर अपनी सहानुभूति तथा दया प्रकट कर दिया करती थी।
माटी वाली की ग्राहक टिहरी की ठकुराइन को पूर्वजों की विरासत से विशेष लगाव था। वे उनकी विरासत की प्रत्येक वस्तु को बहुत सँभालकर रखती थी। आम मनुष्य पूर्वजों की वस्तुओं को कबाड़ या पुराने फैशन की कहकर उन्हें कबाड़ी के हाथों औने-पौने दामों में बेच देता है, पर इसके विपरीत ठकुराइन ने पूर्वजों की विरासत भले ही वह पीतल का साधारण गिलास ही क्यों न हो सँभाल रखा है। वे उसे पुरखों की गाढ़ी कमाई से अर्जित किया हुआ मानती है, जिसमें पुरखों की मेहनत और यादें समाई हैं।
माटी वाली गरीब, लाचार महिला है जो अपनी रोजी-रोटी के लिए सुबह से शाम तक परेशान रहती है। वह प्रातःकाल माटाखान जाती है और माटी लाकर घर-घर में देती है। वह अत्यंत परिश्रमी महिला है।
माटी वाली बुढ़िया का पति बीमार एवं असक्त था। वह बिस्तर पर लेटा रहता था। माटी वाली शहर से आते ही सबसे पहले अपने पति के भोजन की व्यवस्था कर उसकी सेवा में जुट जाती थी। उसकी पतिपरायणता अनुकरणीय थी। माटी वाली का स्वभाव अत्यंत विनम्र था। वह सभी की प्रिय थी। सभी उसके कार्य-व्यवहार से खुश रहते थे। इस प्रकार माटी वाली की परिश्रमशीलता, मृदुभाषिता, पति-परायणता तथा व्यवहारकुशलता मुझे प्रभावित करती है।
माटी वाली की वृद्धावस्था तथा गरीबी पर तरस खाकर घर की मालकिनें बची हुई एक-दो रोटियाँ, ताजा-बासी साग, तथा बची-खुची चाय दे दिया करती थीं, वह उनमें से एकाध रोटी अपने पेट के हवाले कर लेती थी तथा बाकी बची रोटियाँ कपड़े में बाँधकर रख लेती थी, ताकि वह इसे ले जाकर अपने वृद्ध, बीमार एवं अशक्त पति को खिला सके। माटी वाली को जैसे ही दो या उससे अधिक रोटियाँ मिलती थीं वह तुरंत सोचने लगती थी कि इतनी रोटी मैं स्वयं खाऊँगी तथा इतनी बची रोटियाँ अपने पति के लिए ले जाऊँगी। उसके द्वारा रोटियों का यूँ हिसाब लगाना उसकी गरीबी, मजबूरी तथा विवशता को प्रकट करता है।
माटी वाली घर की मालकिन से मिली तीन रोटियाँ लेकर जा रही थी। वह मन-ही-मन आज बहुत खुश थी। घर पहुँचने पर कदमों की आहट सुनकर भी जब बुड्ढे के शरीर में हलचल न हुई तो बुढ़िया का माथा ठनका, उसने देखा कि बुड्ढा मर चुका था। उसे अब और रोटियों की जरूरत न थी।
भूख और भोजन का आपस में बहुत ही गहरा रिश्ता है। यदि खाने वाले को भूख लगी हो तो भोजन रुचिकर तथा स्वादिष्ट लगती है और खाने वाला का पेट पहले से भरा हो तो वही भोजन उसे अच्छा नहीं लगेगा। उसे भोजन में कोई स्वाद नहीं मिलेगा। भोजन की ओर देखने का उसका जी भी न करेगा। अतः स्वाद भोजन में नहीं बल्कि भूख में हैं।