माटी वाली शार्ट समरी
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टिहरी में भागीरथी नदी पर बहुत बड़ा बाँध बना है जिसमें पूरा टिहरी शहर और उसके पास के अनेक गाँव डूब गए। पहले जो लोग अपने घरो, व्यापारियों से जुड़े थे उनके सामने अचानक विस्थापित होने का संकट उपस्थित हो गया ।’ माटी वाली ‘ ( Mati Wali ) कहानी भी इसी विस्थापन की समस्या से जुड़ी है।
बूढ़ी ‘माटी वाली ‘ पूरे टिहरी शहर में घर-घर लाल मिट्टी बाँट रही होती है और उसी से उसका जीवन चलता है [घरो में लिपाई-पुताई में लाल मिट्टी काम आती है। एक पुराने कपड़े की गोल गद्दी सिर पर रखकर उस पर मिट्टी का कनस्तर रखे हुए वह घर-घर जाकर मिट्टी बेचती है ,उसे सारे शहर के लोग माटी वाली के नाम से ही जानते हैं। एक दिन माटी वाली मिट्टी बेचकर एक घर में पहुँचती है तो मकान मालकिन ने उसे दो रोटियां दी । माटी वाली ने उसमें से एक रोटी अपने सिर पर रखे गंदे कपड़े से बाँध ली | तब तक मालकिन चाय लेकर आ गई। पीतल के पुराने गिलास में माटी वाली फूंक -फूंक कर चाय सुड़कने लगी। माटी वाली ने कहा कहा कि पूरे बाज़ार में अब किसी के पास ऐसी पुरानी चीजें नहीं रह गई हैं जिस पर मालकिन ने कहा की यह पुरखो की चीज़े हैं। न जाने किन कष्टों के साथ इन्हे खरीदा गया होगा | अब लोग इनका कदर नहीं करते। अपनी चीज़ का मोह बहुत बुरा होता है और टिहरी का मोह भी ऐसा ही है।
बूढ़ी 'माटी वाली ' पूरे टिहरी शहर में घर-घर लाल मिट्टी बाँट रही होती है और उसी से उसका जीवन चलता है [घरो में लिपाई-पुताई में लाल मिट्टी काम आती है। एक पुराने कपड़े की गोल गद्दी सिर पर रखकर उस पर मिट्टी का कनस्तर रखे हुए वह घर-घर जाकर मिट्टी बेचती है ,उसे सारे शहर के लोग माटी वाली के नाम से ही जानते हैं।