मैं तो वहीं खिलौना लूंगा कविता की व्याख्या
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मैं तो वही खिलौना लूंगा / सियारामशरण गुप्त
व्यथित हो उठी मां बेचारी- था सुवर्ण-निर्मित वह तो ! 'खेल इसी से लाल, नहीं है राजा के घर भी यह तो ! इस मिट्टी से खेलेगा क्या राजपुत्र, तू ही कह तो । ... खेल रहा था उछल-उछलकर वह तो उसी खिलौने से ।
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