मैं तो वही खिलौना लूँगा
मैं तो वही खिलौना लूँगा मचल गया दीना का लाल
खेल रहा था जिसको लेकर राजकुमार उछाल-उछाल।
व्यथित हो उठी माँ बेचारी- था सुवर्ण-निर्मित वह तो
खेल इसी से लाल, नहीं है राजा के घर भी यह तो!
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राजा के घर! नहीं-नहीं माँ, तू मुझको बहलाती है,
इस मिट्टी से खेलेगा क्या राजपुत्र, तू ही कह तो।
फेंक दिया मिट्टी में उसने, मिट्टी का गुड्डा तत्काल,
'मैं तो वही खिलौना लूँगा – मचल गया दीना का लाल ।
गा
मैं तो वही खिलौना मचल गया शिशु राजकुमार,
'वह बालक पुचकार रहा था पथ में जिसको बारंबार ।
'वह तो मिट्टी का ही होगा, खेलो तुम तो सोने से।
दौड पडें सब दास-दासियाँ राजपुत्र के रोने से
मिट्टी का हो या सोने का, इनमें वैसा एक नहीं,
खेल रहा था उछल-उछलकर वह तो उसी खिलौने से।
राजहठी ने फेंक दिए सब अपने रजत-हेम-उपहार,
लूँगा वहीं, वही लूँगा मैं! मचल गया वह राजकुमार ।
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Nice lines..........
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अति उत्तम.........।
...!!!...
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