मृत्य भूमि मां से बढ़कर क्यों है
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जन्म देनेवाली माँ और जन्म लेने के बाद माँ एवं संतान का पालन-पोषण करनेवाली धरती माँ से बढ़कर संसार में भला और कौन हो सकता है। माँ और मातृभूमि किसी व्यक्ति के जीवन की अनमोल निधि है, जिसके आगे तीनों लोकों का सुख सहर्ष न्योछावर है। ममतामयी आँचल एवं दुलार भरी गोद किसी भी व्यक्ति की सारी व्यथाओं को हर लेती है। माँ के हृदय से अधिक उदात्त एवं विशाल हृदय इस दुनिया में किसी का संभव नहीं।
हम अपने रहने की भूमि को मातृभूमि की संज्ञा देते हैं। उसे धरती माँ कहकर पुकारते हैं। अथर्ववेद में लिखा गया है कि माता भूमि – प्रत्रोहं पृथिव्या – अर्थात् माता है और हम उसके पुत्र है।
अथर्ववेद का यह मंत्र माँ की महिमा से जोड़कर ही पृथ्वी की गरिमा का गान करता है। और साथ-ही साथ माँ एवं मातृभूमि की व्याख्या भी करता है। यही देशभक्ति का मूलमंत्र भी हैं। क्योंकि जिसने अपने देश की भूमि को माता मान लिया, वह उसके सुरक्षा एवं सम्मान केलिए अपना सर्वस्व बलिदान करेगा नहीं।
जो व्यक्ति माँ एवं मातृभूमि केलिए कुर्बानी देता है, ऐसे व्यक्ति को देवता भी सिर झुकाकर नमन करते हैं। इसलिए कहा गया है कि – जननी-जन्मभूमिश्च स्वगीदपि गरीयसी। अर्थात् जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठतर होती है। कई अर्थों में माँ के अधिक महत्व मातृभूमि को दिया जाता है।
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