मातहिं पितहिं उरिन भये नीके गुरु ऋण रहा सोच बढ़ जीके मैं कौन सा रस है
Answers
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• इसमें हास्य रस हैं।
• इसका स्थाई भाव हास होता है।
मातहिं पितहिं उरिन भये नीके गुरु ऋण रहा सोच बढ़ जीके मैं कौन सा रस है |
इन पंक्तियों में हास्य रस है |
{ लक्ष्मणजी ने कहा- हे परशुराम जी से कहा कि आपके शील को कौन नहीं जानता? वह संसार भर में प्रसिद्ध है। आप माता-पिता से तो अच्छी तरह उऋण हो ही गए, अब गुरु का ऋण रहा, जिसका जी में बड़ा सोच लगा है }
हस्य रस की परिभाषा :-
जब किसी व्यक्ति या वस्तु की वेशभूषा, वाणी , चेष्ठा, आकर इत्यादि में आई विकृति को देखकर सहज हँसी आ जाए तब वह हास्य रस होता है। हास्य रस के अवयव निम्न प्रकार हैं स्थायी भाव -हास ,आलम्बन - विकृत वस्तु अथवा व्यक्ति |
रस की परिभाषा
काव्य को पढ़कर मिलने वाली अंदरूनी खुशी को रस कहा जाता है। इसे इस प्रकार समझा जा सकता है कि यदि कोई कविता पढ़कर आप प्रेरित एवं उत्तेजित हो जाते हैं तब उस कविता में वीर रस का प्रयोग किया गया है।इसी प्रकार अन्य कई प्रकार के रस हैं जिन्हे मिलाकर काव्य का निर्माण किया जाता है।
रस प्रायः 11 प्रकार के होते हैं।