Hindi, asked by gauravpurohit685, 7 months ago

"मंद-गंध पुष्प माल" का आशय स्पष्ट कीजिए​

Answers

Answered by anupriya1606
12

Answer:

"मंद-गंध पुष्प माल" का आशय स्पष्ट कीजिए

Explanation:

अट नहीं रही है

आभा फागुन की तन

सट नहीं रही है।

इस कविता में कवि ने वसंत ऋतु की सुंदरता का बखान किया है। वसंत ऋतु का आगमन हिंदी के फगुन महीने में होता है। ऐसे में फागुन की आभा इतनी अधिक है कि वह कहीं समा नहीं पा रही है

कहीं साँस लेते हो,

घर-घर भर देते हो,

उड़ने को नभ में तुम

पर-पर कर देते हो,

आँख हटाता हूँ तो

हट नहीं रही है।

वसंत जब साँस लेता है तो उसकी खुशबू से हर घर भर उठता है। कभी ऐसा लगता है कि बसंत आसमान में उड़ने के लिए अपने पंख फड़फड़ाता है। कवि उस सौंदर्य से अपनी आँखें हटाना चाहता है लेकिन उसकी आँखें हट नहीं रही हैं।

पत्तों से लदी डाल

कहीं हरी, कहीं लाल,

कहीं पड़ी है उर में

मंद गंध पुष्प माल,

पाट-पाट शोभा श्री

पट नहीं रही है।

पेड़ों पर नए पत्ते निकल आए हैं, जो कई रंगों के हैं। कहीं-कहीं पर कुछ पेड़ों के गले में लगता है कि भीनी‌-भीनी खुशबू देने वाले फूलों की माला लटकी हुई है। हर तरफ सुंदरता बिखरी पड़ी है और वह इतनी अधिक है कि धरा पर समा नहीं रही है।

Answered by sompalkumarkumar9
5

Answer:

फागुन ko mandh gandh pushap mal kaha Gaya hai

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