Hindi, asked by waghbharti61, 3 months ago

मिठाईवाला इस पाठ का सारांश लिखिये​

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Answered by supikaur09
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मिठाईवाला का सारांश

मिठाईवाले के माध्यम से लेखक ने एक ऐसे प्रतिष्ठित व्यक्ति की मन:स्थिति पर प्रकाश डाला है जो असमय ही अपने बच्चों तथा पत्नी को खो चुका है। अपने निराशा भरे जीवन में आशा का संचार करने के लिए वह कभी मिठाईवाला, कभी मुरलीवाला व कभी खिलौनेवाला बनकर आता है वच्चों के प्रति उसका विशेष लगाव झलकता था। उसे उन बच्चों में अपने बच्चों की झलक नजर आती थी जिससे उसे बहुत संतोष और प्रसन्नता का अनुभव होता है। मिठाईवाले का बच्चों को आकर्षित करना-मिठाईवाला पैसों के लालच में अपना सामान नहीं बेचता था, वह तो चाहता था कि बच्चे सदा हँसते-खेलते हैं। इस कारण जब-जब भी आता, बच्चों की मनभावन चीजें, कभी खिलौने व कभी मिठाइवाँ बेचने के लिए लाता। गलीभर में गा-गाकर व कम दाम में सामान बेचकर बच्चों को प्रसन्न करता। रोहिणी की हैरानी का कारण-विजय बाबू के बच्चे चुन्नू-मुन्नू एक दिन एक खिलौने वाले से खिलौने लेकर आए तो उनकी माँ रोहिणी ने उनसे पूछा-'कितने में लाए हो?' तो मुनू ने बताया 'दो पैसे में।' रोहिणी हैरान थी कि खिलौनेवाला इतने बढ़िया खिलौने इतने कम दामों में क्यों बेच गया?

मुरलीवाला मुरली बजाकर सबका मन मोह लेता था। रोहिणी ने भी उसकी मधुर आवाज सुनी तो उसने जान लिया कि यह वही खिलौनेवाला है। उसने अपने पति से मुरलियाँ खरीदने को कहा। विजय बाबू ने दाम पूछा तो मुरलीवाले ने कहा कि वैसे तो तीन-तीन पैसे की बेचता हूँ लेकिन आपको दो पैसे में दूंगा। ऐसा कहने पर विजय बाबू उसे कहने लगे कि तुम लोग तो झूठ बोलते हो, सबको दो पैसे में ही देते होंगे। तो मुरलीवाला भी कह उठा कि यह तो ग्राहकों का दस्तूर है कि दुकानदार भले हानि में वस्तु बेचे पर ग्राहक को यही लगता है कि वह लूट रहा है। विजय बाबू ने मुरली के प्रति उपेक्षा भाव दिखाते हुए भी दो मुरलियाँ खरीद ही ली। यह सब बातें सुनकर भी रोहिणी को न जाने क्यों मुरलीवाले के प्रति सहानुभूति थी। मिठाईवाले का बच्चों को बहलाना-आठ माह बीतने के बाद एक दिन फिर नगर-भर में मधुर कंठ फूट पड़ा,

मिठाईवाले को रोहिणी ने तुरंत पहचान लिया कि यह वही फेरीवाला है। उसने दादी से कहा चुन्न मुन्नू के लिए मिठाई लेनी है। उसे कमरे में बिठाओ। रोहिणी स्वयं चिक की ओट में बैठ गई और दादी ने उसे बिठा लिया। दादी ने मोल-भाव कर गोलियाँ ले ली। लेकिन रोहिणी के मन में तो उत्सुकता थी कि उसे इस व्यवसाय में क्या बचता है क्योंकि वह इतने कम दामों पर सामान बेचता था। मिठाईवाले ने कहा कि यही खाने भर को मिल जाता है और कभी नहीं भी मिलता। पर संतोष, धैर्य और असीम सुख जरूर मिल जाता है यही वह चाहता भी है।

मिठाईवाले के जीवन के बारे में जानने की जिज्ञासा रोहिणी की बढ़ती चली गई। उसने उसके घर-परिवार के बारे में जानना चाहा। मिठाईवाला भावुक हो उठा। उसने गंभीरता से बताना शुरू किया कि मेरे भी बच्चे थे, सुंदर स्त्री थी, अच्छा व्यवसाय था, नौकर-चाकर थे लेकिन विधाता की लीला कि सब समाप्त हो गया। बस उन्हीं बच्चों की खोज में निकला हूँ, इन्हीं बच्चों में ही उन्होंने कहीं जन्म लिया होगा। इन्हीं की खुशी से संतोष पा लेता हूँ। पैसों की कमी थोड़े है। जो नहीं है उसे ही पाना चाहता हूँ। मिठाईवाले की भावुकता-अपने बीते दिनों की याद करते ही मिठाईवाला भावुक हो उठा। इतने में चुन्नू-मुन्नू माँ का आँचल पकड़े माँ से मिठाई माँगने लगे। मिठाईवाले ने दो पुड़ियाँ मिठाइयों से भरी उन्हें पकड़ा दीं। रोहिणी व दादी ने पैसे देने चाहे तो उसने कहा आज ये पैसे न लूँगा। कहते हुए उसकी आँखें भर आईं। यह कहकर उसी प्रकार मीठी आवाज़ में 'बच्चों को बहलाने वाला मिठाईवाला' कहकर आगे बढ़ गया।

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