Hindi, asked by vivankumar80, 20 days ago

"मैं देख रहा था और अपनी पूरी चेतना से महसूस कर रहा था - शक्ति का विस्तार, विस्तार की शक्ति।"​

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Answered by shishir303
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¿ "मैं देख रहा था और अपनी पूरी चेतना से महसूस कर रहा था - शक्ति का विस्तार, विस्तार की शक्ति।"​

संदर्भ एवं प्रसंग : यह पंक्तियां ‘मोहन राकेश’ द्वारा रचित संस्मरण “आखिरी चट्टान” से ली गई हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक ने अपने समुद्रों के पास खड़े होकर मिलने वाले अनुभवों को अपने विचार भावों से व्यक्त किया है।

व्याख्या : लेखक का कहना था कि वो हिंद महासागर के किनारे जिस चट्टान पर खड़ा था, उसके चारों तरफ की चट्टानों से हिंद महासागर की में उठने वाली तीव्र लहरें चट्टानों से टकरा कर बल खा रही थीं। जब वह लहरें चट्टानों से टकराती तो चूर-चूर होकर चारों तरफ बूंदों के रूप में बिखर जातीं थीं। लेखक को सागर का ये अनंत विस्तार दिखाई दे रहा था। वे बलखाती लहरें ऐसी प्रतीत हो रही थीं, जैसे सागर की शक्तिशाली भुजाएं हों। सामने दूर-दूर तक फैला सागर का जल ही जल दिखाई दे रहा था। लेखक विशाल सागर की अनंत शक्ति का विस्तार दूर क्षितिज तक फैला देख रहा था।  

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Answered by sahuvarsha68841
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Explanation:

iska answer uper mein send kar diya ha and like this page

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