मिथिला लोक कला में कचनी तथा भरनी तकनीक के बारे में लिखें
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मिथिलांचल में लोक चित्र परंपराओं के विकास और उसकी निरंतरता का क्रम क्या है यह उतना ही अस्पष्ट है जितना की मिथिला की दो अगड़ी जातियों ब्राह्मण और कायस्थ जाति की चित्र परंपराओं का। लेकिन, 1970 के दशक में जब ब्राह्मण और कायस्थ जाति की परंपरागत चित्रकला अपनी लोकप्रियता की ओर बढ़ रही थी, तब उसे स्थानीय लोक कलाकारों ने स्पष्ट चुनौती दी। यह चुनौती उन्होंने कलात्मकता और बाजार, दोनों ही स्तरों पर प्रस्तुत की और सफल भी रहे। बावजूद इसके, कि विचारों, विश्वासों और बाजार पर अगड़ी जातियों का कब्जा था, लोक कलाकारों ने अपनी कला में नवीन प्रयोग किये, अपनी प्रतीकात्मकता विकसित की और उनके लिए अपना बाजार गढ़ लिया। यह उनके लिए दिवास्वप्न के साकार होने से कम नहीं था।
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