मैथिलीशरण गुप्त का नवम सर्ग
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शाखी फूल फलें यथेच्छ बढ़के, फैलें लताएँ हरी। मेरे जीवन का, चलो सखि, वहीं सोता भिगोता बहे। क्या क्या होगा साथ, मैं क्या बताऊँ?
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