Hindi, asked by Anonymous, 12 hours ago

मैथिलीशरण गुप्त पर एक साहित्यिक निबंध लिखिए |​

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Answered by rafikansari9878
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मैथिलीशरण गुप्त हिंदी साहित्य के जाने माने कवी कहलाए जाते है| उन्होंने अपनी बहुत सी रचनाओं से सभी का दिल जीता था| वे हिंदी साहित्य के कड़ी बोली के बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रथम कवी माने जाते है| मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त 1986 में भारत के उत्तरप्रदेश के जासी में चिरंगाव में हुआ था| बचपन से ही उन्हें हिंदी कविताओं और साहित्य संदर्ब में रूचि थी| उनके पिता जी का नाम सेठ रामचरण कनकने था और माता का नाम कौशिल्या बाई था| आज के इस पोस्ट में हम आपको मैथिलीशरण गुप्त की कविताए, मैथिलीशरण गुप्त की कविता की विषयवस्तु, मैथिलीशरण गुप्त की काव्यगत विशेषताएँ, मैथिलीशरण गुप्त की कविता यशोधरा, मैथिलीशरण गुप्त की काव्य भाषा पर विचार, मैथिलीशरण गुप्त साकेत इन मराठी, हिंदी, इंग्लिश, बांग्ला, गुजराती, तमिल, तेलगु, आदि की जानकारी देंगे जिसे आप अपने स्कूल के निबंध प्रतियोगिता, कार्यक्रम या भाषण प्रतियोगिता में प्रयोग कर सकते है| ये निबंध खासकर कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए दिए गए है|

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Answered by ShiningBlossom
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ㅤㅤㅤㅤमैथिलीशरण गुप्त

मैथिलीशरण गुप्त की कविता का मूल स्वर राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक है। जिस प्रकार वृक्ष के आविर्भाव एवं विकास के लिए परंपरारूपी बीज एवं युगधर्मरूपी जलवायु अपेक्षित है, वैस ही समाज और राष्ट्र के विकास के लिए संस्कृति एवं राष्ट्रीयता का समन्वय अपेक्षित है। युगावतार, विचारक, दार्शनिक और राष्ट्रनेता गुप्त जी के पूर्व भक्ति आंदोलन ने इतिहास, दर्शन, धर्म, नीति, सदाचार सबको भावात्मकता के रंग में रंग दिया था। किंतु बौद्धिक युग के साहित्यिक चिकित्सक गुप्त जी ने हृदय की गूंजती आवाज को काव्य का आवरण देकर मानव जीवन की प्रायः सभी अवस्थाओं, परिस्थितियों, रसों तथा धर्म-संप्रदायों का वर्णन लोकनायक तुलसीदास के समान नहीं, वरन गाँधी के पदचिह्नों पर चलकर किया है। राष्ट्र को राष्ट्रीयता का संदेश सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में ही दी जा सकती है राम, कृष्ण, बुद्ध, नानक सभी व्यापक मानवतावादी दृष्टिकोण रखनेवाले भारतीय मनीषी राष्ट्र एवं संस्कृति के द्योतक थे और उनका गुणगान धर्मपरायण भारत सदियों से करता आ रहा है।

द्विवेदी युग के कवि शांतिप्रिय, रामनरेश, दिनकर, श्रीधर और माखनलाल चतुर्वेदी आदि की कविताओं में भी गुप्त जी के समान राष्ट्रीय-सांस्कृतिक धारा प्रवाहित हुई है, जिसका प्रमाण इनके मंगलाप्रसाद पारितोषिक पुरस्कार प्राप्त पुस्तक 'साकेत' (1931) राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन की गीता 'भारत भारती' (1912) में हुआ है। इनके काव्य के सैद्धांतिक पक्ष में में भारतीय संस्कृति की एकता और समन्वय की भावना है तो व्यावहारिक पक्ष में स्वतंत्रता आंदोलन, समाज सुधार, उपेक्षित नारी के उत्कर्ष के लिए प्रयत्न तथा गाँधी का क्रियात्मक रूप है। विश्व भारती का उपासक कवि संस्कृति शून्य राष्ट्रीयता का पोषक नहीं है। उनका जीवन दर्शन मानवता के सर्वांगीण अभ्युदय का आकांक्षी है। उनके साहित्यों की विपुलता में पिष्टपोषण नहीं, वरन आधारभूत पृष्ठभूमि का समयोचित विस्तार है, जिसके अध्ययन से अप्रतिम प्रतिभा प्रतिभासित होती हैं।

हम कौन थे क्या हो गए और क्या होंगे अभी।

आओ विचारें आज मिलकर ये समस्या सभी ।।

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