मंदिर के बाहर-भीतर क्या गूँज रहा था
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मंदिर का सारा आँगन धूप-दीप की सुंगध से भरा हुआ था अर्थात महक रहा था। मंदिर के भीतर और बाहर सभी स्थान पर वहाँ मनाए जा रहे उत्सव की प्रसन्नता भरी आवाज गूँज रही थी
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मंदिर के बाहर भीतर घंटियों का शोर गूंज रहा था।
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