माधव! मोह-फाँस क्यों टूटै।
बाहर कोटि उपाय करिय, अभ्यंतर ग्रंथि न छूटै।।
घृतपूरन कराह अंतरगत, ससि-प्रतिबिम्ब दिखावै।
ईधन अनल लगाय कलपसत, औटत नास न पावै।।
तरु-कोटर महँ बस बिहंग, तरु काटे मरै न जैसे
साधन करिय बिचार-हीन, मन सुद्ध होइ नहिं तैसे।।
अंतर मलिन बिषय मन अति, तन पावन करिय पखारे।
मरइ न उरग अनेक जतन, बलमीकि बिविध बिधि मारे।।
तुलसीदास हरि-गुरु-करुना बिनु, बिमल बिबेक न होई।
बिनु बिबेक संसार-घोर-निधि, पार न पावै कोई।। vyakhya kijiye
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