माधवदास के बार-बार समझाने पर भी चिडि़या सोने के पिंजरे और सुख-सुविधाओं को कोई महत्त्व नहीं दे रही थी। दूसरी तरफ़ माधवदास की नज़र में चिडि़या की जि़द का कोई तुक न था। माधवदास और चिडि़या के मनोभावों के अंतर क्या-क्या थे?
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