मा वर्ण विद करियर
स्वतंत्रता-
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उलद
कलुष
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मनुष्यलोकमें ही वर्णाश्रम आदिके कर्मोंका अधिकार है अन्य लोकोंमें नहीं यह नियम किस कारणसे है यह बतानेके लिये ( अगला श्लोक कहते हैं ) अथवा वर्णाश्रम आदि विभागसे युक्त हुए मनुष्य सब प्रकारसे मेरे मार्गके अनुसार बर्तते हैं ऐसा आपने कहा सो नियमपूर्वक वे आपके ही मार्गका अनुसरण क्यों करते हैं दूसरेके मार्गका क्यों नहीं करते इसपर कहते हैं ( ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र इन ) चारों वर्णोंका नाम चातुर्वर्ण्य है। सत्त्व रज तम इन तीनों गुणोंके विभागसे तथा कर्मोंके विभागसे यह चारों वर्ण मुझ ईश्वरद्वारा रचे हुए उत्पन्न किये हुए हैं। ब्राह्मण इस पुरुषका मुख हुआ इत्यादि श्रुतियोंसे यह प्रमाणित है। उनमेंसे सात्त्विक सत्त्वगुणप्रधान ब्राह्मणके शम दम तप इत्यादि कर्म हैं। जिसमें सत्त्वगुण गौण है और रजोगुण प्रधान है उस क्षत्रियके शूरवीरता तेज प्रभृति कर्म हैं। जिसमें तमोगुण गौण और रजोगुण प्रधान है ऐसे वैश्यके कृषि आदि कर्म हैं। तथा जिसमें रजोगुण गौण और तमोगुण प्रधान है उस शूद्रका केवल सेवा ही कर्म है। इस प्रकार गुण और कर्मोंके विभागसे चारों वर्ण मेरेद्वारा उत्पन्न किये गये हैं यह अभिप्राय है। ऐसी यह चार वर्णोंकी अलगअलग व्यवस्था दूसरे लोकोंमें नहीं है इसलिये ( पूर्वश्लोकमें ) मानुषे लोके यह विशेषण लगाया गया है। यदि चातुर्वर्ण्यकी रचना आदि कर्मके आप कर्ता हैं तब तो उसके फलसे भी आपका सम्बन्ध होता ही होगा इसलिये आप नित्यमुक्त और नित्यईश्वर भी नहीं हो सकते इसपर कहा जाता है यद्यपि मायिक व्यवहारसे मैं उस कर्मका कर्ता हूँ तो भी वास्तवमें मुझे तू अकर्ता ही जान तथा इसीलिये मुझे अव्यय और असंसारी ही समझ।