माय फ्रेंड है ग्रीक वर्ड फ्रॉम द कंडीशन ऑफ इलनेस एडवाइस हिम बट ई शोल्ड नेवर फॉल इन अगेन pa letter
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सभी एक ही संदेश देते हैं कि मानवता की सेवा ही सच्चे अर्र्थों में ईश्वर की सेवा है। एक बार स्वामी विवेकानंद जी अमेरिका प्रवास पर थे तो किसी ने उनसे कहा कि कृपया आप मुझे अपने हिंदू धर्म में दीक्षित करने की कृपा करें। स्वामी जी बोले, महाशय मैं यहां हिंदू धर्म के प्रचार के लिए आया हूं, न कि धर्म-परिवर्तन के लिए। मैं अमेरिकी धर्म-प्रचारकों को यह संदेश देने आया हूं कि वे अपने धर्म-परिवर्तन के अभियान को सदैव के लिए बंद करके प्रत्येक धर्म के लोगों को बेहतर इंसान बनाने का प्रयास करें। इसी में हर धर्म की सार्थकता है। वर्तमान में हमने मानवता को भुलाकर अपने को जाति-धर्म, गरीब-अमीर जैसे कई बंधनों में बांध लिया है और उस ईश्वर को अलग-अलग बांट दिया है। धर्म एक पवित्र अनुष्ठान भर है, जिससे चेतना का शुद्धिकरण होता है। धर्म मनुष्य में मानवीय गुणों के विचार का स्रोत है, जिसके आचरण से वह अपने जीवन को चरितार्थ कर पाता है। मानवता के लिए न तो पर्याप्त संसाधनों की आवश्यकता होती है और न ही भावना की, बल्कि सेवा भाव तो मनुष्य के आचरण में होना चाहिए। जो गुण व भाव मनुष्य के आचरण में न आए, उसका कोई मतलब नहीं रह जाता है।
Answer: सभी एक ही संदेश देते हैं कि मानवता की सेवा ही सच्चे अर्र्थों में ईश्वर की सेवा है। एक बार स्वामी विवेकानंद जी अमेरिका प्रवास पर थे तो किसी ने उनसे कहा कि कृपया आप मुझे अपने हिंदू धर्म में दीक्षित करने की कृपा करें। स्वामी जी बोले, महाशय मैं यहां हिंदू धर्म के प्रचार के लिए आया हूं, न कि धर्म-परिवर्तन के लिए। मैं अमेरिकी धर्म-प्रचारकों को यह संदेश देने आया हूं कि वे अपने धर्म-परिवर्तन के अभियान को सदैव के लिए बंद करके प्रत्येक धर्म के लोगों को बेहतर इंसान बनाने का प्रयास करें। इसी में हर धर्म की सार्थकता है। वर्तमान में हमने मानवता को भुलाकर अपने को जाति-धर्म, गरीब-अमीर जैसे कई बंधनों में बांध लिया है और उस ईश्वर को अलग-अलग बांट दिया है। धर्म एक पवित्र अनुष्ठान भर है, जिससे चेतना का शुद्धिकरण होता है। धर्म मनुष्य में मानवीय गुणों के विचार का स्रोत है, जिसके आचरण से वह अपने जीवन को चरितार्थ कर पाता है। मानवता के लिए न तो पर्याप्त संसाधनों की आवश्यकता होती है और न ही भावना की, बल्कि सेवा भाव तो मनुष्य के आचरण में होना चाहिए। जो गुण व भाव मनुष्य के आचरण में न आए, उसका कोई मतलब नहीं रह जाता है।
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