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मैया की आई वृद्ध आश्रम से चिट्ठी कैसे हो बेटा हो गई चोरी संस्कारों की तिजोरी लुट गया मैं स्वमत लिखिए​

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क्या आपके पास समय है अपने बूढ़े माता-पिता के लिए.... अगर नहीं तो ये जरूर पढ़ें

हमारे बुजुर्ग माता-पिता बस हमारा साथ चाहते हैं। तो अगली बार जब परदेश से देश आएं तो भले ही उनके लिए तोहफे लाना भूल जाएं पर घर जाकर उनके साथ वक़्त जरूर बिताएं। मत भूलिए वो तब हमारे साथ थे जब हम अपने पैरों पर चल भी नहीं पाते थे।

By - Eshwari ShuklaUpdate: 2019-10-01 05:56 GMT

क्या आपके पास समय है अपने बूढ़े माता-पिता के लिए.... अगर नहीं तो ये जरूर पढ़ें

लखनऊ। कुर्सी पर बैठी एक बूढ़ी महिला अचानक से जोर-जोर से चिल्लाने लगी, आँखें बंद कर वो रो रही है और निधि-निधि कह रही है। स्टाफ नर्स से बात कर के पता चला निधि इनकी बेटी का नाम है। ये जगह है, आस्था वरिष्ठ जन परिषद, गुडम्बा मार्ग, लखनऊ। मैं एक पत्रकार हूं और इसी सिलसिले में मेरा अक्सर नयी-नयी जगहों पर घूमना फिरना होता है। ये उसी कड़ी का हिस्सा है।

बदल गया बचपन का सपना, मिली एक नई समझ

बचपन में हममें से कई अपने माता-पिता के लिए एक ही सपना देखते हैं, कि उनको खूब खुश रखेंगे, उन्हें हर खुशी देंगे। बड़े होकर हमसे ज्यादतर लोग इसके लिए खूब मेहनत भी करते हैं। इन सपनों को लिए कुछ को गांव, किसी को शहर तो कई बार कुछ लोगों को सात समुंदर पार भी जाना होता है। लेकिन रहने के स्थानों के बीच की ये दूरियां कई बार इतनी बढ़ जाती हैं कि अपने अजनबी हो जाते हैं।

मैंने भी कुछ ऐसा ही ख्वाब 'देखा था' जी हां 'देखा था' पर कुछ दिनों पहले ही कुछ ऐसा अनुभव हुआ जिसने जेहन से पुराने सारे ख्वाब मिटा दिए और तब एक नई समझ मिली।

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हमारी व्यस्त लाइफ और हमारे माता-पिता

वृद्ध आश्रम पर स्टोरी के दौरान मैंने अपना एक दिन का समय इस वृद्धा आश्रम में गुजारा। यहां के मैनेजर डॉ. विश्वजीत, बताते हैं, ''यहां लोग अपने बूढ़े मां बाप जो मानसिक और शारीरिक रूप से बीमार हैं, उन्हें छोड़ जाते हैं। कुछ लोगों के लिए बिजी लाइफ के चलते इन बुजुर्गों का ध्यान घर पर रखना मुश्किल हो जाता है। हमारे यहां सुख सुविधाओं का ख्याल रखा जाता है। यहां कई बार हॉर्स राइडिंग जैसी चीज़े कराई जाती हैं, जो घर पर नहीं हो सकती। यहां ये लोग खुश हैं, जिसकी वजह से इनकी फैमिली भी खुश रहती है।"

बातचीत ख़त्म होने पर मेरे मन में एक सवाल था। जरा रूककर जब मैंने विश्वजीत जी से ये सवाल किया की अगर कल आप और आपकी पत्नी अपनी जिंदगी में इतना व्यस्त हो जाएं कि आपके लिए अपने बुजुर्ग मां-बाप को संभालना मुश्किल हो जाए तो क्या आप भी उन्हें एक ओल्ड ऐज होम में छोड़ देंगे? उनका जवाब हैरान करने वाला था, "नहीं, मैं ये नहीं करूंगा"

वो मेरे पुराने दिन

खैर अब बारी थी वहां रह रहे बुजुर्गों से मिलने की। सबसे पहले मेरी मुलाकात सत्यवती सरताज सिंह से हुई। सत्यवती एक कनवर्टेड क्रिश्चियन हैं। वो एक खुशमिजाज और बातूनी मालूम हो रही थीं। सत्यवती कहती हैं, "मैं ऊपर वाले से यही दुआ करती हूं कि तूने अभी तक अच्छा रखा आगे भी अच्छा रखना। मेरी एक बहन है और उसका एक बेटा भी है, लेकिन मैं किसी में दखल नहीं देना चाहती, मैं यहां आराम से हूं। कभी-कभी घर की याद आती है। आज के वक़्त में लोग ज्यादा सेल्फिश (स्वार्थी) हो गए हैं।" सत्यवती ने शादी नहीं की है और उन्हें अपनी ज़िंदगी से कोई शिकायत भी नहीं।

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सत्यवती के बेड के बगल में ही बुजुर्ग करुणा मिश्रा का बेड है, करुणा थोड़े मूडी स्वाभाव की हैं। आपको उनसे बात करने के दौरान थोड़ी सावधानी बरतनी होगी, वो कब किस बात पर आपसे रूठ जाए कुछ कहा नहीं जा सकता।

रामलाल भी इस बुजुर्ग मंडली के सदस्य हैं। दो साल यहां रह रहे रामलाल के दो बेटे हैं और दोनों ही अमेरिका में रहते हैं। इनकी पत्नी भी अमेरिका में रहती हैं। रामलाल ज्यादा तो कुछ नहीं बोले लेकिन पता चला कि उनकी कम सुनने की बीमारी और सेहत दूरियों की वजह बनी है। दूर ही सही लेकिन पत्नी माया देवी उनकी जिंदगी की हिरोइन हैं।

बुढ़ापे में लौट आता है बचपन

इन बुजुर्गों से बातचीत के दौरान एक ही बात समझ आ रही थी की सचमुच बुढ़ापे में बचपन लौट आता है। अपनी बचकानी हरकतों से अपनी और सबका ध्यान खींचने वाली शकीरा खातून बात करते करते कुरान की आयत सुनाती हैं। वो बातचीत के बीच बार-बार अपने पैरों पर खुजली करती रहती हैं, और स्टाफ नर्स उन्हें ऐसा करने से रोकती है। शकीरा अब एक बच्ची बन चुकी हैं, मुझसे बात करने के दौरान ही उन्होंने अपने डेन्चर्स अपने मुंह से बाहर निकाल दिए। वो मानसिक रूप से बीमार हैं, उन्हें अपना पुराना कुछ भी याद नहीं, शायद यहीं वजह है की शकीरा अपने में ही इतनी मस्त और खुश दिखाई दे रही थी।

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