मैया मोरी, मैं नहिं माखन खायो,
भोर भयो गैयन के पाछे, मधुबन मोहिं पठायो।
चार पहर बंसीबट भटक्यो, सांझ परे घर आयो।।
मैं बालक बहियन को छोटो, छीको किहि बिधि पायो।
ग्वाल-बाल सब बैर परे हैं, बरबस मुख लपटायो।।
तू जननी मन की अति भोरी, इनके कहि पतियायो।
जिय तेरे कछु भेद उपजि है, जानि परायो जायो।
यह लै अपनी लकुटि-कमरिया, बहुतहिं नाच नचायो।
'सूरदास' तब बिहसि जसोदा, लै उर कंठ लगायो।।
2
मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायौ।
मोसौं कहत, मोल कौ लीन्हों, तू जसुमति कब जायो।।
कहा करौं इहि रिस के मारें, खेलन हौं नहिं जात।
पुनि-पुनि कहत कौन है माता, को है तेरौ तात।।
गोरे नंद, जसोदा गोरी, तू कत स्यामल गात।
चुटकी दै-दै ग्वाल नचावत, हँसत सबै मुसुकात।।
तू मोहीं को मारन सीखी, दाउहि कबहुँ न खीझै।
मोहन मुख रिस की ये बातें, जसुमति सुनि-सुनि रीझै।।
सुनहु कान्ह, बलभद्र चबाई, जनमत ही कौ
धूत।
सूर स्याम! मोहिं गोधन की सौं, हौं माता तू पूत।।
Answers
Answered by
27
Answer:
इस दोहे में श्री कृष्ण जी अपनी माता से कहते हैं कि हे माता मैंने माखन नहीं खाया है सुबह होते ही मैं गायों को चराने के लिए भेज दिया जाता हूं दिन भर वही रहता हूं भटकता हूं और शाम को घर आता हूं मैं बहुत छोटा सा बालक हूं इतने ऊपर रखी हुई हड्डियों को कैसे उल्ले पाऊंगा ग्वाल बाल सब मेरे साथ हे माता तुम हृदय की बहुत ही कोमल हो तुम सब की बातों को सुनकर उनके बहकावे में आ जाती हो .
please mark as brainlist answer
Similar questions