Hindi, asked by s148012cgoutam00805, 9 hours ago

मैं यौवन का उन्‍माद लिए फिरता हूँ,

उन्‍मादों में अवसाद लए फिरता हूँ,

जो मैं यौवन का उन्‍माद लिए फिरता हूँ,

उन्‍मादों में अवसाद लए फिरता हूँ,

जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,

मैं, हाय, किसी की याद लिए फिरता हूँ!


कर यत्‍न मिटे सब, सत्‍य किसी ने जाना?

नादन वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना!

फिर मूढ़ न क्‍या जग, जो इस पर भी सीखे?

मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भूलना!



कर यत्‍न मिटे सब, सत्‍य किसी ने जाना?

नादन वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना!

फिर मूढ़ न क्‍या जग, जो इस पर भी सीखे?

मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भूलना!


१..कवि को बाहर भितर क्या हंसाता - रूलाता है.

२. कवि ने यह क्यों कहा कि सत्य किसी ने नहीं जाना ।​

Answers

Answered by shishir303
1

मैं यौवन का उन्‍माद लिए फिरता हूँ,  

उन्‍मादों में अवसाद लए फिरता हूँ,  

जो मैं यौवन का उन्‍माद लिए फिरता हूँ,  

उन्‍मादों में अवसाद लए फिरता हूँ,

जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,  

मैं, हाय, किसी की याद लिए फिरता हूँ!  

कर यत्‍न मिटे सब, सत्‍य किसी ने जाना?  

नादन वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना!

फिर मूढ़ न क्‍या जग, जो इस पर भी सीखे?  

मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भूलना!    

कर यत्‍न मिटे सब, सत्‍य किसी ने जाना?  

नादन वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना!

फिर मूढ़ न क्‍या जग, जो इस पर भी सीखे?  

मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भूलना!

१. कवि को बाहर भीतर क्या हंसाता - रूलाता है।

✎... कवि को बाहर भीतर उसकी यादें हंसाती और रुलाती हैं।

२. कवि ने यह क्यों कहा कि सत्य किसी ने नहीं जाना।​  

✎... सत्य किसी ने न जाना, कवि ने ये इसलिये कहा है कि क्योंकि दुनिया धन के पीछे पागल है, सब अपने स्वार्थ में लिप्त है, और सत्य को जानने की किसी को नही पड़ी है।  

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