Madhua kahani
ki samiksha
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'मधुआ' कहानी में कवि श्री जयशंकर प्रसाद एक शराबी के मानवीय संवेदना की भूमिका स्पष्ट करते है। इस कहानी में शराबी अपने जीवन को मूल्यहीन मानकर मनमाने जीवन को चला रहा था। शराबी अपने पीने के इतजाम के लिए दूसरों को कहानियाँ सुनाकर उनका मन बहलाकर उनसे जो पैसे प्राप्त करता, उन पैसे को शराब (मदिरा) में उडाया करता था।उसका मानना था कि लंबे दुःखपूर्ण जीवन से बेहतर है कि मौजबहार की एक घड़ी, किन्तु एक दिन 'मधुआ' नाम के एक लडके की दुःखपूर्ण परिस्थिति से अवगत हो कर, शराबी के मन में उस मधुआ के प्रति संवेदना का फूल अंकुरित होने लगा जिससे वह अपने जीवन के सही पथ को चयन कर पाया और नये सिरे से जीवन व्यतीत करने की सोची ।
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