Madhya Pradesh Par Ek nibandh likhiye Hindi mai
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भारत के दिल में बसे मध्यप्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हैं। मध्यप्रदेश 1 नवंबर, 2000 तक क्षेत्रफल के आधार पर भारत का सबसे बड़ा राज्य था। इस दिन एवं मध्यप्रदेश के कई नगर उस से हटाकर छत्तीसगढ़ की स्थापना हुई थी।
प्रदेश की सीमाऐं पांच राज्यों की सीमाओं से मिलती हैं। इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश, पूर्व में छत्तीसगढ़, दक्षिण में महाराष्ट्र, पश्चिम में गुजरात तथा उत्तर-पश्चिम में राजस्थान है।
संस्कृति में मध्यप्रदेश जगमगाते दीपक के समान :भारत की संस्कृति में मध्यप्रदेश जगमगाते दीपक के समान है, जिसकी रोशनी की सर्वथा अलग प्रभा और प्रभाव है। यह विभिन्न संस्कृतियों की अनेकता में एकता का जैसे आकर्षक गुलदस्ता है, मध्यप्रदेश, जिसे प्रकृति ने राष्ट्र की वेदी पर जैसे अपने हाथों से सजाकर रख दिया है, जिसका सतरंगी सौन्दर्य और मनमोहक सुगंध चारों ओर फैल रहे हैं। यहां के जनपदों की आबोहवा में कला, साहित्य और संस्कृति की मधुमयी सुवास तैरती रहती है। यहां के लोक समूहों और जनजाति समूहों में प्रतिदिन नृत्य, संगीत, गीत की रसधारा सहज रूप से फूटती रहती है। यहां का हर दिन पर्व की तरह आता है और जीवन में आनंद रस घोलकर स्मृति के रूप में चला जाता है। इस प्रदेश के तुंग-उतुंग शैल शिखर विन्ध्य-सतपुड़ा, मैकल-कैमूर की उपत्यिकाओं के अंतर से गूंजते अनेक पौराणिक आख्यान और नर्मदा, सोन, सिंध, चंबल, बेतवा, केन, धसान, तवा नदी, ताप्ती, शिप्रा, काली सिंध आदि सर-सरिताओं के उद्गम और मिलन की कथाओं से फूटती सहस्त्र धाराएं यहां के जीवन को आप्लावित ही नहीं करतीं, बल्कि परितृप्त भी करती हैं।
प्रदेश की सीमाऐं पांच राज्यों की सीमाओं से मिलती हैं। इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश, पूर्व में छत्तीसगढ़, दक्षिण में महाराष्ट्र, पश्चिम में गुजरात तथा उत्तर-पश्चिम में राजस्थान है।
संस्कृति में मध्यप्रदेश जगमगाते दीपक के समान :भारत की संस्कृति में मध्यप्रदेश जगमगाते दीपक के समान है, जिसकी रोशनी की सर्वथा अलग प्रभा और प्रभाव है। यह विभिन्न संस्कृतियों की अनेकता में एकता का जैसे आकर्षक गुलदस्ता है, मध्यप्रदेश, जिसे प्रकृति ने राष्ट्र की वेदी पर जैसे अपने हाथों से सजाकर रख दिया है, जिसका सतरंगी सौन्दर्य और मनमोहक सुगंध चारों ओर फैल रहे हैं। यहां के जनपदों की आबोहवा में कला, साहित्य और संस्कृति की मधुमयी सुवास तैरती रहती है। यहां के लोक समूहों और जनजाति समूहों में प्रतिदिन नृत्य, संगीत, गीत की रसधारा सहज रूप से फूटती रहती है। यहां का हर दिन पर्व की तरह आता है और जीवन में आनंद रस घोलकर स्मृति के रूप में चला जाता है। इस प्रदेश के तुंग-उतुंग शैल शिखर विन्ध्य-सतपुड़ा, मैकल-कैमूर की उपत्यिकाओं के अंतर से गूंजते अनेक पौराणिक आख्यान और नर्मदा, सोन, सिंध, चंबल, बेतवा, केन, धसान, तवा नदी, ताप्ती, शिप्रा, काली सिंध आदि सर-सरिताओं के उद्गम और मिलन की कथाओं से फूटती सहस्त्र धाराएं यहां के जीवन को आप्लावित ही नहीं करतीं, बल्कि परितृप्त भी करती हैं।
harshu53:
very very thanks
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