madhyakalin Yug ki Samajik Arthik Dasha ka varnan Kijiye Hindi mai
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madhyakalin Yug Mein Hamari Samajik Ka Aakhri pasta Itni achchi Nahin thi main dusre ka Gulam Ban Kar Hi Na Kara
मध्यकालीन युग की सामाजिक आर्थिक दशा :-
प्राचीन भारत के इतिहास ( मध्यकालीन युग ) में आठवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी का काल सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है । इस काल के सामाजिक परिवर्तनों के पीछे कुछ आर्थिक घटनाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा जिन्होंने प्राचीन सामाजिक व्यवस्था के प्रति लोगों का दृष्टिकोण बदल दिया । भारत के इतिहास में हर्ष की मृत्यु के बाद से लेकर राजपूत वंशों के शासन तक (650-1200 ई॰) का काल सामान्य तौर से पूर्व मध्य युग कहा जाता है । इस काल में व्यापार तथा वाणिज्य का हास हुआ । रोम साम्राज्य के पतन हो जाने के कारण पश्चिमी देशों के साथ भारत का व्यापार बन्द हो गया ।
इस्लाम के उदय के कारण भी भारत का स्थल मार्ग से होने वाला व्यापार प्रभावित हुआ । नगर तथा नगरीय जीवन में भी हास हुआ यही कारण है कि इस काल में स्वर्ण मुद्राओं का अभाव दृष्टिगोचर होता है । स्वर्ण मुद्राओं का प्रचलन बन्द हो गया तथा चाँदी एवं ताँबे की मुद्रायें बहुत कम दलवायी गयीं । नगरों के पतन के कारण व्यापारी ग्रामों की ओर उन्मुख हुए ।
देश में अनेक आर्थिक तथा प्रशासनिक ईकाइयाँ संगठित हो गई जो अपने आप में पूर्णतया स्वतंत्र थीं । व्यापार-वाणिज्य के पतन के कारण व्यापारी तथा कारीगर एक ही स्थान पर रहने के लिये मजबूर हुए तथा उनका एक स्थान से दूसरे स्थान में आना-जाना बन्द हो गया । इस प्रकार इस काल की अर्थ-व्यवस्था अवरुद्ध हो गयी तथा एक ऐसे समाज का उदय हुआ जिसमें ग्रामीण क्षेत्र आर्थिक दृष्टि से अधिकाधिक आत्म-निर्भर होते गये । उन्हें अपनी जरूरत की वस्तुऐं स्वयं उत्पन्न करनी पड़ती थीं । ग्रामों में रहने वाले व्यापारी तथा कारीगर स्थानीय ग्राहकों के उपयोग के लिये ही वस्तुओं का निर्माण करते थे ।
सामाजिक गतिशीलता के अभाव के फलस्वरूप एक सुदृढ़ स्थानीयता की भावना का विकास हुआ । पूर्व मध्यकाल के द्वितीय चरण से हम व्यापार-वाणिज्य की स्थिति में सुधार के लक्षण देखते है । दसवीं शती के बाद भारत का व्यापार पश्चिमी देशों के साथ पुन तेज हो गया जिससे देश की आर्थिक प्रगति को प्रोत्साहन मिला । इस काल में सिक्कों का प्रचलन पुन प्रारम्भ हो गया ।भारत में मुस्लिम सत्ता स्थापित हो जाने के बाद से मुसलमान व्यापारियों तथा सौदागरों की गतिविधियाँ तेज हुई जिसके फलस्वरूप उत्तरी भारत में व्यापार-वाणिज्य की प्रगति हुई । बारहवीं शती तक आते-आते देश आर्थिक दृष्टि से पुन समृद्ध हो गया । पूर्व मध्यकाल की आर्थिक परिस्थितियों ने सामाजिक जीवन को प्रभावित किया ।