मगर कोठारी में बैठने की देर थी कि ऑखों में छल-छल ऑसू बहने लगे। दुपटटे से बार-बार उन्हें पोंछती पर वे बार बार उमड़ आते, जैसे बरसों का बांध तोड़कर उमड़ आये हों। माँ ने बहुतेरा दिल को समझाया, हाथ जोड़े, भगवान का नाम लिया, बेटे के चिरायु होने की प्रार्थना की । व्याख्या करें।
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इस पाठ में लेखक कहना चाहता है कि अतिथि हमेशा भगवान् नहीं होते क्योंकि लेखक के घर पर आया हुआ अतिथि चार दिन होने पर भी जाने का नाम नहीं ले रहा है। पाँचवे दिन लेखक अपने मन में अतिथि से कहता है कि यदि पाँचवे दिन भी अतिथि नहीं गया तो शायद लेखक अपनी मर्यादा भूल जाएगा। इस पाठ में लेखक ने अपनी परेशानी को पाठको से साँझा किया है -
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इस पाठ में लेखक दर्शाना चाहते है कि महमान या अतिथि हमेशा भगवान नहीं होता क्योंकि लेखक के घर पर आया हुआ महमान को आए हुए चार दिन हो चुके थे पर किए भी वह जाने का नाम ही नहीं ले रहा है । अब न रह सकता लेखक पाँचवे दिन पर लेखक अतिथि को मे कहता है कि मन अगर यह अतिथि पाँचवे दीन भी अगर घर नहीं गया तो लेखक अपनी मर्यादा भूल जाएगा ।
यह पर लेखक अपनी स्थिति दर्शाता है।
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