महाभोज उपन्यास के प्रतिपाद्य पर प्रकाश डालिए 500सब्दो में
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"महाभोज उपन्यास के प्रतिपाद्य पर प्रकाश"
‘मन्नू भंडारी’ द्वारा लिखित ‘महाभोज’ उपन्यास एक राजनीतिक पृष्ठभूमि वाला उपन्यास है। जिसने समकालीन राजनीतिक परिस्थितियों का प्रसंगानुसार चित्रण किया गया है। उपन्यास की पृष्ठभूमि उस समय की है, जब आपातकाल के बाद कांग्रेस की पराजय हो रही थी और जनता पार्टी का उदय हो रहा था।
महाभोज उपन्यास का परिवेश हमारे आज के आधुनिक राजनीतिक जीवन जैसा है। उपन्यास बेहद रोचक शैली में लिखा गया है, जिसे पढ़कर उसमें अवास्तविकता का बोध बिल्कुल भी नहीं होता। महाभोज उपन्यास में अनेक कथाओं का संयोजन मिलता है। महाभोज उपन्यास में मौलिकता के साथ-साथ मार्मिक प्रसंगों का संयोजन होने के कारण कथानक की संरचना में कोई भी कमी नहीं आने पाई है।
कथावस्तु की दृष्टि से यह उपन्यास आरंभ से अंत तक सार्थक रहा है। उपन्यास के संवाद कथा चलने के साथ-साथ पात्रों की चारित्रिक विशेषताओं का परिचय देने में पूर्णता सफल रहे हैं। इस उपन्यास के संवाद, संक्षिप्त, सरल हैं। उपन्यास में राजनीतिक घटनाओं का वर्णन किया गया है। उपन्यास की भाषा शैली मुख्यतः बोलचाल की आम भाषा देसी है, जो एकदम सरल एवं सुबोध है।
इस उपन्यास के माध्यम से मन्नू भंडारी ने यह कहने का प्रश्न किया है कि आज की राजनीति चंद नेताओं के हाथ का खिलौना बन कर रह गई है। जिसके पास धन और बल का जोर है। वह ही राजनीति में अपना प्रभाव रखता है। उन्होंने राजनीति के बाहुबल का यथा चित्रण महाभोज उपन्यास में किया है।
महाभोज उपन्यास का कथानक सरवन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में स्थित सरोहा नामक एक गांव है यहां पर विधानसभा का चुनाव होने वाला है। कथानक का आरंभ कहानी के एक पात्र विशेसर की मौत की घटना से होता है। सरोहा गांव की हरिजन बस्ती में आगजनी की घटना होने से अनेक लोगों की निर्मम हत्या कर दी जाती है। विशेसर के पास इस घटना की सत्यता के प्रमाण थे और वह इन प्रमाणों को दिल्ली जाकर अधिकारियों को सौंप कर बस्ती के लोगों को न्याय दिलवाना चाहता था। लेकिन राजनीतिक षड्यंत्र विशेषर को ही जेल में डलवा दिया जाता है और उसकी हत्या करवा दी जाती है। विशेसर साथी बिंदा इस प्रतिरोध को जिंदा रखता है। बिंदा को भी राजनीतिक षड्यंत्र रच कर जेल में डाल दिया जाता है। फिर एक पुलिस अधीक्षक सक्सेना इस प्रतिरोध को जारी रखता है।
महाभोज मन्नू भंडारी द्वारा लिखा गया एक हिंदी उपन्यास है।[1] उपन्यास में अपराध और राजनीति के गठजोड़ का यथार्थवादी चित्रण किया गया है।
कथानक संपादित करें
महाभोज उपन्यास का ताना-बाना सरोहा नामक गाँव के इर्द-गिर्द बुना गया है। सरोहा गाँव उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग में स्थित है, जहाँ विधान सभा की एक सीट के लिए चुनाव होने वाला है। कहानी बिसेसर उर्फ़ बिसू की मौत की घटना से प्रारंभ होती है। सरोहा गाँव की हरिजन बस्ती में आगजनी की घटना में दर्जनों व्यक्तियों की निर्मम हत्या हो चुकी थी। बिसू के पास इस हत्याकाण्ड के प्रमाण थे, जिन्हें वह दिल्ली जाकर सक्षम प्राधिकारियों को सौंपना और बस्ती के लोगों को न्याय दिलाना चाहता था। किंतु राजनीतिक षडयंत्र और जोरावर के(जोरावर के खिलाफ पुक्ता सबूत पाए जाने के प्रतिशोधी भावना में किए गए)षड्यंत्र के कारण उसके (बिसू) के चाय में दो लोगों को भेज कर जहर दे मिलवा दिया जाता है,जिसके चलते उसकी मृत्यु हो जाती है। बिसू की मौत के पश्चात उसका साथी बिंदेश्वरी उर्फ़ बिंदा इस प्रतिरोध को ज़िंदा रखता है। बिंदा को भी राजनीति और अपराध के चक्र में फँसाकर सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है। अंततः नौकरशाही वर्ग का ही एक चरित्र, पुलिस अधीक्षक सक्सेना, वंचितों के प्रतिरोध को जारी रखता है। जातिगत समीकरण किस प्रकार भारतीय स्थानीय राजनीति का अनिवार्य अंग बन गये हैं, उपन्यास की केंद्रीय चिंता है। पिछड़ी और वंचित जाति के लोगों के साथ अत्याचार और प्रतिनिधि चरित्रों द्वारा उसका प्रतिरोध कथा को गति प्रदान करता है। भंडारी ने उपन्यास में नैतिकता, अंतर्द्वंद्व, अंतर्विरोध से जूझते सत्ताधारी वर्ग, सत्ता प्रतिपक्ष, मीडिया और नौकरशाही वर्ग के अवसरवादी चरित्र पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी की है।
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