महाभारत के अर्जुन का जन्म कब कहां और कैसे हुआ था
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कुंती पुत्र अर्जुन एक महान योद्धा था। उसकी वीरता और पराक्रम के चर्चे न केवल पृथ्वी पर बल्कि देवलोक तक प्रसिद्ध थे। अर्जुन का जन्म जंगल में हुआ था। इसी दौरान कुछ ऐसा हुआ था, जो अर्जुन सहित सभी पांडवों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण साबित हुई।
महाभारत के उद्योगपर्व के अनुसार, जब अर्जुन का जन्म हुआ था, उस समय एक अद्भुत घटना घटी थी। इसी घटना के बाद ये तय हो गया था कि युद्ध में पांडवों की ही जीत होगी।
अर्जुन के जन्म के समय कुंती के सामने एक आकाशवाणी हुई थी। उस आकाशवाणी ने अर्जुन के जन्म पर ही उसके महान वीर होने की और युद्ध में कौरवों का विनाश करके राज्य पाने की घोषणा कर दी थी।
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अर्जुन
अर्जुन महाभारत के मुख्य पात्र हैं। महाराज पाण्डु एवं रानी कुन्ती के वह तीसरा पुत्र और सबसे अच्छा तीरंदाज था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। जीवन में अनेक अवसरों पर उसने इसका परिचय दिया था द्रौपदी को स्वयंवर में जीतने वाला वो ही था। पांडु की ज्येष्ठ पत्नी वासुदेव कृष्ण की बुआ कुंती थी जिसने इन्द्र के संसर्ग से अर्जुन को जन्म दिया। कुंती का एक नाम पृथा था, इसलिए अर्जुन 'पार्थ' भी कहलाए। बाएं हाथ से भी धनुष चलाने के कारण 'सव्यसाची' और उत्तरी प्रदेशों को जीतकर अतुल संपत्ति प्राप्त करने के कारण 'धनंजय' के नाम से भी प्रसिद्ध हुए।
जीवन परिचय
जब पाण्डु संतान उत्पन्न करने में असफल रहे तो कुन्ती ने उनको एक वरदान के बारे में याद दिलाया। कुन्ती को कुंआरेपन में महर्षि दुर्वासा ने एक वरदान दिया था जिसमें कुंती किसी भी देवता का आवाहन कर सकती थीं और उन देवताओं से संतान प्राप्त कर सकती थी। पाण्डु एवं कुन्ती ने इस वरदान का प्रयोग किया एवं धर्मराज, वायु एवं इन्द्र देवता का आवाहन किया। इस प्रकार अर्जुन इन्द्र के पुत्र थे।