महाभारत कथा
शुरू किया।
महाभारत की कथा महर्षि पराशर के कीर्तिमान ऋषि-मुनियों ने पालन पोषण किया और पढ़ाया-
पुत्र वेद व्यास की देन है। व्यास जी ने महाभारत लिखाया। जब युधिष्ठिर सोलह वर्ष के हुए, तो
की यह कथा सबसे पहले अपने पुत्र शुकदेव ऋषियों ने पाँचों कुमारों को हस्तिनापुर ले जाकर
को कंठस्थ कराई थी और बाद में अपने दूसरे पितामह भीष्म को सौंप दिया।
शिष्यों को। मानव-जाति में महाभारत की कथा पाँचों पांडव बुद्धि से तेज और शरीर
का प्रसार महर्षि वैशंपायन के द्वारा हुआ। वैशंपायन से बली थे। उनकी प्रखर बुद्धि और मधुर
व्यास जी के प्रमुख शिष्य थे। ऐसा माना जाता है स्वभाव ने सबको मोह लिया था। यह देखकर
कि महाराजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने एक धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव उनसे जलने लगे और
बड़ा यज्ञ किया। इस महायज्ञ में सुप्रसिद्ध पौराणिक उन्होंने पांडवों को तरह-तरह से कष्ट पहुँचाना
सूत जी भी मौजूद थे। सूत जी ने समस्त ऋषियों
की एक सभा बुलाई। महर्षि शौनक इस सभा के दिन-पर-दिन कौरवों और पांडवों के बीच
अध्यक्ष हुए।
वैरभाव बढ़ता गया। अंत में पितामह भीष्म ने
सूत जी ने ऋषियों की सभा में महाभारत दोनों को किसी तरह समझाया और उनके बीच
की कथा प्रारंभ की कि महाराजा शातनु के बाद संधि कराई। भीष्म के आदेशानुसार कुरु-राज्य
उनके पुत्र चित्रांगद हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठे। के दो हिस्से किए गए। कौरव हस्तिनापुर में
उनकी अकाल मृत्यु हो जाने पर उनके भाई
ही राज करते रहे और पांडवों को एक अलग
विचित्रवीर्य राजा हुए। उनके दो पुत्र हुए-धृतराष्ट्र राज्य दे दिया गया, जो आगे चलकर इंद्रप्रस्थ
और पांडु। बड़े बेटे धृतराष्ट्र जन्म से ही अंधे थे, के नाम से मशहूर हुआ। इस प्रकार कुछ दिन
इसलिए उस समय की नीति के अनुसार पाडु शांति रही।
को गद्दी पर बैठाया गया।
उन दिनों राजा लोगों में चौसर खेलने का
शागत्य तक
बाजियाँ लगा दी
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