महंगाई की मार का समाधान
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मँहगाई या मूल्य वृद्धि केवल एक सामाजिक समस्या ही नहीं वरन एक आर्थिक समस्या भी है । आज विश्व बाहरी तौर पर हमें महान भले ही मान रहा हो, गाँधी के नाम की माला को जप रहा हो किन्तु वह हमारी आन्तरिक दुर्बलता से भली- भाँति परिचित है ।
वह है हमारी व्यवस्था तथा शासन में आर्थिक अनुशासन की कमी जिसका परिणाम हमें मँहगाई के रूप में देखने को मिलता है । इस मूल्य वृद्धि से जनजीवन बहुत ही त्रस्त हो गया है ।
आज का प्रत्येक विक्रेता अधिक से अधिक लाभ कमाने के चक्कर में है, यदि किसी वस्तु के भाव की वृद्धि का तो तुरन्त विक्रेता पहले से दुकान पर वर्तमान वस्तु के दाम एकदम बढ़ा देता है, जबकि नवीन वसुर यदि महँगी खरीदे तो उसे अधिक मूल्य पर देनी चाहिए । परन्तु पुरानी वस्तु को उसे पिछले भाव – में देना चाहिए ।
कभी-कभी तो बढ़े मूल्य से भी अधिक मूल्य पुरानी बस्तुओं पर वह ले लेता है, यही अधिक लाभवृत्ति ही मूलय वृद्धि कहलाती है । ये कारण एक नैतिक कारण है । जिससे मँहगाई फैलती है किन्तु एक दूसरी वजह सरकार का व्यापारियों पर अन्धाधुन्ध कर लगाना तथा अफसरशाही द्वारा व्यापारी वर्ग को परेशान करके घूस के रूप में पैसा खींचना ।
तंग आकर व्यापारी वर्ग के सामने मूल्य बढ़ाने के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं रह जाता । जो इम्पोर्टर हैं (आयातकर्त्ता) उनके माल पर इतना सीमा शुल्क लगा दिया जाता है कि वे भी बाजार में वस्तुओं के दाम बढ़ाने के लिये मजबूर कर दिये जाते है ।
इसके अतिरिक्त विचार करने पर माँहगाई के अनेक कारण दृष्टिगोचर होते हैं, जिनमें से मुख्य इस प्रकार हैं:
मँहगाई या मूल्य वृद्धि केवल एक सामाजिक समस्या ही नहीं वरन एक आर्थिक समस्या भी है । आज विश्व बाहरी तौर पर हमें महान भले ही मान रहा हो, गाँधी के नाम की माला को जप रहा हो किन्तु वह हमारी आन्तरिक दुर्बलता से भली- भाँति परिचित है ।