महंगाई की समस्या पर निबंध 250 साब्दो में
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भूमिका- आज विश्व के देशों के सामने दो समस्याएं प्रमुख हैं – मुद्रा स्फीति तथा महंगाई । जनता अपनी सरकार से मांग करती है कि उसे कम दामों पर दैनिक उपभोग की वस्तुएं उपलब्ध करवाई जाएं । विशेषकर विकासशील देश अपनी आर्थिक कठिनाइयों के कारण ऐसा करने में असफल हो रहे हैं । लोग आय में वृद्धि की भी मांग करते हैं । देश के पास धन नहीं । ‘ फलस्वरूप मुद्रा का फैलाव बढ़ता है, सिक्के की कीमत घटती है, महंगाई और बढ़ती है ।
महंगाई के कारण- भारत की प्रत्येक सरकार ने आवश्यक वस्तुओं की कीमतें कम करने के आश्वासन दिए किन्तु महंगाई बढ़ती ही चली गई । इस कमर-तोड़ महंगाई के अनेक कारण हैं । महंगाई का सबसे बड़ा कारण होता है, उपज में कमी । सूखा पड़ना, बाईं आना अथवा किसी कारण से उपज में कमी हो जाए तो वस्तुओं के दाम बढ़ना स्वाभाविक है । लगभग दस वर्ष पूर्व भारत को इतिहास के प्रबलतम सूखे का सामना करना पड़ा । फलस्वरूप अनाज का भारी मात्रा में आयात करना पड़ा । देश का यह बड़ा दुर्भाग्य है कि हम अभी तक अनाज के उत्पादन की दिशा में पूर्णतया स्वावलम्बी नहीं हो पाए हैं । हरित-क्रान्ति के अन्तर्गत बहुत-से कार्यक्रम चलाए गए अधिक उपज वाले बीजों का आविष्कार तथा प्रयोग बढ़ा, रासायनिक खाद के प्रयोग से भी उपज बड़ी, किन्तु हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति न हो सकी ।
दूसरा बड़ा कारण है- जमाखोरी । उपज जब मण्डियों में आती है, अमीर व्यापारी भारी मात्रा में अनाज एवं वस्तुएं खरीद कर अपने गोदाम भर लेता है और इस प्रकार बाजार में वस्तुओं की कमी हो जाती है । व्यापारी अपन गोदामों की वस्तुएं तभी निकालता है जब उसे कई गुणा अधिक कीमत प्राप्त होती है । भारत को निरन्तर अनेक युद्धों का सामना करना पड़ा । विशेषकर बंगला देश के स्वतन्त्रता संघर्ष का देश को भारी मूल्य चुकाना पड़ा । 1975 में अनुकूल वर्षा के कारण उपज में वृद्धि हुई तो दाम कम होने के चिह्न दिखाई दिए किन्तु यह स्थिति अधिक देर तक न ठहर सकी और कीमतें फिर ऊंची चढ़ने लगीं ।
दोषपूर्ण वितरण प्रणाली- प्रत्येक सरकार ने महंगाई कम करने का आश्वासन दिया है, किन्तु प्रश्न यह है कि महंगाई कम कैसे हो? उपज में बढ़ोतरी हो, यह आवश्यक है किन्तु हम देख चुके हैं कि उपज बढ़ने का भी कोई बहुत अनुकूल प्रभाव कीमतों पर नहीं पड़ता । वस्तुतः हमारी वितरण-प्रणाली में ऐसा दोष है जौ उपभोक्ताओं की कठिनाइयां बढ़ा देता है । ऐसा प्रतीत होता है कि भ्रष्टाचार का सर्वग्रासी अजगर यहां भी अपना काम करता है । वस्तुओं की खरीद और वितरण की निगरानी करने वाले विभागों के कर्मचारी ईमानदारी से काम करें तो कीमतों की वृद्धि को. रोका जा सकता है ।
जिम्मेदारी किसपर ?- अजित स्थिति के प्रारम्भिक दिनों में वस्तुओं के दाम नियत करने की परिपाटी चली थी । किन्तु शीघ्र ही व्यापारियों ने पुन: मनमानी आरम्भ कर दी । तेल-उत्पादक देशों द्वारा तेल की कीमत बढ़ा देने से भी महंगाई बड़ी है । वस्तुतः अफसरशाही, लाल फीताशाही तथा नेताओं की शुतुरमुर्गीय नींद महंगाई के लिए पूरी तरह जिम्मेदार है ।
सिंचाई सुविधाओं का अभाव- देश का कितना दुर्भाग्य है कि स्वतन्त्रता के अनेक वर्ष पश्चात् भी किसानों को सिंचाई की पूर्ण सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं । बड़े-बड़े नुमायशी भवन बनाने की अपेक्षा सिंचाई की छोटी योजनाएं बनाना और उनके क्रियान्वित करना बहुत जरूरी है । हमारे सामने ऐसे भी उदाहरण आ चुके हैं जब सरकारी कागजों में कुएं खुदवाने के लिए धन-राशि का व्यय दिखाया गया किन्तु कुएं कभी खोदे ही नहीं गए ।
उपसंहार- बढ़ती महंगाई पर अंकुश रखने के लिए सक्रिय राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता है । यदि निम्न और मध्यम वर्ग के लोगों को उचित दाम पर आवश्यक वस्तुएं नहीं मिलेंगी तो असन्तोष बढ़ेगा और हमारी स्वतन्त्रता के लिए पुन: खतरा उत्पन्न हो जाएगा ।
नीचे महंगाई के ऊपर एक और निबंध दिया गया है.
महंगाई (Inflation)
भारत में अनेक समस्याएं हैं जो देश की उन्नति में बाधाएं पैदा करती हैं । ये समस्याएं बेरोजगारी, बढ़ती जनसंख्या, दहेज प्रथा, प्रदूषण, आतंकवाद, बढ़ती महंगाई है । इन समस्याओं में बढ़ती महंगाई भी बहुत बड़ी समस्या है । भारत की आर्थिक समस्याओं के अंतर्गत महंगाई की समस्या बहुत विकराल समस्या है । सभी वस्तुओं के दाम इतनी तेजी से बढ़ते जा रहे हैं कि आम आदमी के लिए निर्वाह करना ही दूभर हो रहा है ।
काका हायरसी ने बढ़ती महंगाई का चित्रण करते हुए कहा है कि वे दिन आते याद जेब में पैसे रखकर सौदा लाते थे बाजार से थैला भरकर धक्का मारा युग ने मुद्रा की क्रेडिट में थैले में रुपये हैं सौदा है पॉकेट में । महंगाई बढ़ने के अनेक कारण हैं जिसमें जनसंख्या का बढ़ना, कृषि उत्पादन, व्यय में वृद्धि, उत्पादकों तथा व्यापारियों की अधिक पैसा कमाने की प्रवृत्ति, मुद्रा प्रसार एवं स्फीति, देश में बढ़ता भ्रष्टाचार एवं प्रशासन की शिथिलता, घाटे की अर्थव्यवस्था तथा धन का असमान वितरण उत्तरदायी है ।
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