महंगाई की समस्या पर निबन्ध | Hindi Essay on The problem of Inflation in India! 250 words.
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महंगाई की समस्या हिंदी निबंध Inflation Essay in Hindi
महँगाई का अर्थ और स्वरूप
महँगाई का अर्थ है-जीवनावश्यक वस्तुओं के मूल्य में लगातार वृद्धि । रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और मनोरंजन-ये आज के मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताएँ हैं। यदि आम आदमी को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति सरलता से होती हो तो महँगाई का प्रश्न ही नहीं खड़ा होता। लेकिन ऐसा नहीं होता। विभिन्न कारणों से बाजार में चीजों के दाम बढ़ते ही जाते हैं । जब यह मूल्य वृद्धि आम आदमी की पहुँच से बाहर हो जाती है, तब उस स्थिति को महँगाई का नाम दिया जाता है। दुर्भाग्य से पिछले कई दशकों से महँगाई ने लोगों का जीना हराम कर दिया है।
महंगाई के कारण
महँगाई बढ़ने के अनेक कारण हैं । सूखा, बाढ़, हिमपात आदि प्राकृतिक कारणों से फसलों को जो हानि होती है उससे खाद्य-पदार्थों की कमी पैदा होती है। इस कमी कारण बाजार में अनाज, फलों और सब्जियों के दाम बढ़ जाते हैं । उत्पादन में खर्च बढ़ने पर उत्पादित वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि हो जाती है। कोयला, पेट्रोल, केरोसीन, डीजल आदि ईंधनों की मूल्य-वृद्धि से भी महँगाई बढ़ती है । युद्ध, हड़ताल, दंगे आदि के कारण बाजार में वस्तुओं की आपूर्ति पर विपरीत असर होता है और मूल्यसूचकांक ऊपर चला जाता है। महँगाई बढ़ने का प्रमुख कारण है जनसंख्या में तीव्र वृद्धि । जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में जरूरी वस्तुओं का उत्पादन नहीं होता तब महँगाई बढ़ती है। कालाबाजारी, तस्करी आदि के कारण भी मूल्यों में वृद्धि हो जाती है।
महँगाई के दुष्परिणाम
महँगाई के अनेक दुष्परिणामों को जन्म देती है। जरूरी वस्तुओं के दाम बढ़ने से सामान्य जनता का जीवन निर्वाह कठिन हो जाता है । मध्यमवर्ग की समस्याएँ भयानक रूप ले लेती हैं। छाती फाड़कर काम करने पर भी गरीबों को पेटभर भोजन नहीं मिलता। सामान्य परिवारों के बच्चों को पोषक आहार न मिलने से उनका उचित विकास नहीं हो पाता। गरीब परिवार के लड़के-लड़कियों को अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ देनी पड़ती है। कन्याओं के हाथ समय पर पीले नहीं हो पाते । मध्यम वर्ग के लोग कर्ज के भार से दब जाते हैं । चोरी, रिश्वतखोरी, डकैती, तस्करी, गुंडागीरी आदि सामाजिक बुराइयों के पीछे महँगाई का ही विशेष हाथ होता है।
महँगाई के नियंत्रण के उपाय
महँगाई पर नियंत्रण पाने के प्रयल कारगर नहीं हो पाते। सरकारी प्रयास भी हाथी के दाँत ही साबित होते हैं । फिर भी यदि सरकार, व्यापारी और जनता समझदारी से काम लें तो इस समस्या पर बहुत कुछ मात्रा में अंकुश पाया जा सकता है । वस्तुओं के उत्पादन और पूर्ति पर सरकार नजर रखे, व्यापारी कालाबाजारी से बचें और लोग सादगी तथा संयम का जीवन अपनाएँ तो मूल्य वृद्धि रोकी जा सकती है।
उपसंहार
कहाँ है वह कृष्ण जो महँगाई के इस कालिय नाग का मर्दन कर जनता को उसके भय से मुक्त कर सके?