Hindi, asked by khushisharma123454, 5 months ago

'महँगाई का दानव' विषय फीचर का आलेख लिखिए।​

Answers

Answered by kirshansharma996
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Answer:

यहां पर महंगाई के दानव से अर्थ है कि देश में महंगाई बहुत बढ़ रही है जिसने अब बानो का रूप ले लिया है danav ke roop se Arth hai Ki ki mahangai badh gai hai uske badhane ke roop Ko danam Ka Roop de diya gaya hai

Answered by artigaikwad9867
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Explanation:

सरकार के पास कीमतें बढ़ने के हर तर्क मौजूद हैं, मगर उन्हें रोकने का एक भी उपाय नहीं है। महंगाई ने (खासकर खाने-पीने की वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि ने) गरीब आदमी तो क्या, मध्यवर्ग के आदमी तक का जीना मुहाल कर दिया है, मगर सरकार कुछ भी नहीं कर पा रही है।

गत बृहस्पतिवार को जारी किए गए आंकड़ो ं के अनुसार खाद्य पदार्थों के थोक मूल्य सूचकांक में पिछले महीने की 20 तारीख को समाप्त हुए हफ्ते में 10.05 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इससे खुदरा मूल्यों पर हुए असर का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। बाजार में सब्जियों, फलों, दूध और दुग्ध उत्पादों, अंडे, मछली और मीट की कीमतें पिछले साल की तुलना में कहीं ज्यादा बढ़ गई हैं।

इस बार की बारिश ने फलों और प्याज की पैदावार को प्रभावित किया है, जिससे इनकी कीमतें और बढ़ सकती हैं। सरकार के पास कीमतें बढ़ने के हर तर्क मौजूद हैं, मगर उन्हें रोकने का एक भी उपाय नहीं है। यूपीए-सरकार के इस दूसरे कार्यकाल को एक तरफ महँगाई का तो दूसरी तरफ भ्रष्टाचार का ग्रहण लगा हुआ है, मगर उससे उबरने का कोई बड़ा प्रयास दिखाई नहीं दे रहा है। महंगा ई का असर सबसे ज्यादा गरीब तबकों पर पड़ता है।

सोचिए कि मात्र 20 रुपए प्रतिदिन की आय पर गुजारा करने वाले देश के 83 करोड़ लोग अपना पेट कैसे भरते होंगे। जाहिर है कि इन तमाम लोगों को शायद एक टाइम तो भूखा ही रहना पड़ता होगा। दिल्ली में साधारण-सी दुकानों में भी चाय का एक कप तीन-चार रुपए से कम पर नहीं मिलता। किसी भी दाल की कीमत 70-80 रुपए प्रति किलो से कम नहीं। अब तो आलू और प्याज की कीमतें भी बढ़ गई हैं। ऐसे में 20 रुपए रोज कमाने वाला आदमी सिवाय रोटी या चावल के और क्या खा सकता है? दूध, दही, पनीर, अंडे, मछली और मीट के दामों ने मध्यवर्ग के लोगों की जिंदगी भी कठिन बना दी है।

हमारे व्यापारियों की यह खास सिफत है कि बाजार में एक बार खुदरा कीमतें बढ़ने के बाद वे भरसक इस कोशिश में लगे रहते हैं कि दाम कम न हों। मसलन क्या दूध और घी के दाम कभी कम हुए हैं?

जनता को इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि लोगों की क्रय शक्ति बढ़ने के कारण लोग ज्यादा प्रोटीन लेने लगे हैं, इसलिए माँग की तुलना में सप्लाई कम हुई है। यह कुछ वैसा ही तर्क है, जो अमेरिका आदि पश्चिमी देश देते हैं कि भारत और चीन में लोग पहले की तुलना में ज्यादा खाने लगे हैं, इसलिए महँगाई बढ़ रही है, पर सवाल सामान की बाजार में उपलब्धता का, उसकी सप्लाई का है, जिसे प्रभावित कर कीमतें बढ़ाई जाती हैं।

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